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________________ सागारधामृत [२७५ जगह चार हजार स्मरण रहे थे, इसलिये उसने धवलदत्तके पास जाकर चार हजार रुपये मांगे । धवलदत्तको मालूम है कि इसके पांच हजार रुपये जमा हैं तथापि " हां भाई, तू अपने सब रुपये ले जा" ऐसा कह कर उसे चार हजार रुपये ही दिलानेकी संमति देना न्यस्तांशविस्मत्रनुज्ञा नामका अतिचार है इसीको न्यासापहार कहते हैं । मंत्रभेद-किसी शरीरके विकारसे अथवा भोह चलाना आदिसे दूसरेके अभिप्रायको जानकर ईर्ष्या अथवा द्वेषसे उसे प्रगट करना अथवा अपनेमें विश्वास रखनेवाले मित्रोंने अपने साथ जो लज्जा आदि करनेवाली वातचीत की है उसे प्रकाश | कर देना मंत्रभेद है। श्री सोमदेवने अपने यशस्तिलकचंपूमें “ मंत्रभेदः परीवादः पैशून्यं कूटलेखनं । मुधासाक्षिपदोक्तिश्च सत्यस्यैते विघातकाः ” अर्थात् “ मंत्रभेद, निंदा, चुगली खाना, झूठे लेख लिखना और मिथ्या साक्षी देना" ऐसे पांच अतिचार कहे हैं । तथा स्वामी समंतभद्राचार्यने भी इसीप्रकार कहे हैं। ये अतिचार ऊपर लिखे हुये मिथ्योपदेश आदि अतिचारोंसे भिन्न हैं तथापि वे सब " परेऽप्यूह्यास्तथात्ययाः " अर्थात् ." इसीप्रकारके और भी अतिचार कल्पना करलेना " इस इसी अध्यायके अठारहवें श्लोकके वाक्यसे ग्रहण किये जाते हैं। भावार्थ-सत्याणुव्रतीको ये सब अतिचार छोड देने चाहिये॥४५॥
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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