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________________ wwwwwwwwwwww. m ammimeman २७४ ] चौथा अध्याय रहोभ्याख्या—जिसके प्रकाश करनेसे उन दोनों स्त्रीपुरुषोंको अथवा अन्य स्त्री पुरुषोंको तीव्र राग वा क्रोध उत्पन्न हो ऐसी किसी एकांत स्थानमें स्त्रीपुरुषोंके द्वारा की हुई गुप्त क्रियाओंको प्रकाश कर देना रहोभ्याख्या है । यदि हंसी खेल आदिमें ही ये गुप्त क्रियायें प्रकाश की जायं तो अतिचार है । यदि ये ही गुप्त क्रियायें किसी दोषको प्रगट करनेके अभिप्रायसे की जायं तो फिर उसका सत्याणुव्रत ही | भंग हो जाता है, ऐसा समझना चाहिये। कटलेखक्रिया--किसी पुरुषने जो वचन नहीं कहा है अथवा जो काम नहीं किया है उसको किसी अन्य पुरुषकी प्रेरणासे फंसाने वा ठगनेकेलिये " इसने ऐसा कहा है अथवा ऐसा काम किया है " ऐसे वाक्य लिखना कूटलेखक्रिया है । अथवा किसी दूसरे पुरुषके अक्षरोंके समान अक्षर लिखना वा मोहर बनाना आदि भी किसीके मतमें कूटलेखक्रिया मानी जाती है। न्यस्तांशविस्मनुज्ञा--किसी पुरुषके द्वारा रक्खे हुये सुवर्ण आदि द्रव्यके कुछ अंश भूलजानेपर उसे देते समय वैसी ही संमति वा आज्ञा देना न्यस्तांशविसर्चनुज्ञा है । जैसे जिनदत्तने धवलदत्तके पास पांच हजार रुपये जमा किये थे, कुछ दिन बाद जिनदत्त अपने रुपये लेने आया परंतु | वह अपने रुपयोंकी संख्या भूल गया था और पांच हजारकी |
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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