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चौथा अध्याय होनेवाले पापासवको दूर करनेकेलिये सदा मौनव्रत धारण करना चाहिये । भावार्थ-सदा मौन रहना अच्छा है परंतु यदि सदा न बन सके तो ऊपर लिखी हुई क्रियायें करते समय अवश्य धारण करना चाहिये ॥ ३८ ॥
आगे-सत्याणुव्रतकी रक्षा करनेकेलिये कहते हैंकन्यागोक्ष्मालीककूटसाक्ष्यन्यासापलापवत् । स्यात्सत्याणुव्रती सत्यमपि स्वान्यापदे त्यजन् ॥३९॥
अर्थ-व्रती श्रावक जिसप्रकार कन्यासंबंधी झूठ बोलना, | गाय, भैंस आदि पशु संबंधी झूठ बोलना, भूमि संबंधी झूठ बोलना, झूठी गवाही देना और रक्षाकलिये रक्खे हुये किसी दुसरे पुरुषके सुवर्ण आदि द्रव्यको पचा जाना आदिका त्याग करता है उसीप्रकार जिस सत्यके बोलनसे अपना तथा दूसरेका वध बंघन होता हो जैसे चोरको चोर कहनेसे अपना तथा उसका वध बंधन हो सकता है ऐसे सत्यको भी छोडता हुआ वह सत्याणुव्रती हो सकता है । जिस बात के कहनेसे राज्यकी
ओरसे अपना और दूसरेका वध बंधन हो सकता है वह स्थूल झूठ है, ऐसे स्थूल झूठको तथा यदि ऐसी कोई सच बात भी हो तो उसे भी जो स्वयं नहीं बोलता और न किसी दुसरेसे बुलाता है वह सत्याणुव्रती श्रावक कहलाता है । ___अन्य जातिकी अथवा अन्यकी कन्याको अपनी अथवा अपनी जातिकी कहना अथवा अपनी वा अपनी जातिकी
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