SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा अध्याय भी अवश्य त्याग करना चाहिये । ऊपर जो "श्री जिनेंद्रदेवकी आज्ञापर श्रद्धान करता है" ऐसा लिखा है उसका अभिप्राय यह है कि जो जीव श्री जिनेन्द्रदेवकी आज्ञापर श्रद्धानकर मद्यमांस आदिको त्याग करता है वही देशवती हो सकता है, यदि किसी पुरुषके कुलपरंपरासे मद्यमांस आदिका सेवन न होता हो और उसीके अनुसार वह पुरुष भी उनका | त्याग करदे तो भी वह देशव्रती नहीं हो सकता ॥२॥ आगे-अपने और अन्य आचार्योंके मतसे मूळगुणम कुछ भेद दिखलाते हैं - अष्टैतान् गृहिणां मूलगुणान् स्थूलवधादि वा । फलस्थाने स्मरेद् द्युतं मधुस्थान इहैव वा ॥३॥ अर्थ-उपासकाध्ययन अर्थात् श्रावकाचार शास्त्रोंके अनुसार गृहस्थोंको सबसे पहिले धारण करनेयोग्य जो 'मद्य मांस १ मद्यमांसमधुत्यागाः सहोदंबरपंचकैः । अष्टावेते गृहस्थानामुक्ता मूलगुणाः श्रुते ॥२॥ (श्रीमत्सोमदेवाचार्यः) अर्थ-पांच प्रकारके उंदबर फलोंके साथ साथ मद्य मांस और मधुका त्याग करना ये आठ मूलगुण श्रावकके होते हैं ऐसा शास्त्रोंमें कहा है। मद्यं मांसं क्षौद्रं पंचोदुबरफलानि यत्नेन । हिंसाव्युपरतकामै मोक्तव्यानि प्रथममेव ॥ (श्रीमदमृतचंद्राचार्यः) अर्थ-हिंसा त्याग करनेकी इच्छा करनेवालोंको प्रथम ही यत्नपूर्वक मद्य मांस मधु और ऊमर कठुमर पीपर बड पाकर ये पांचों उदंबर फल छोड देने योग्य हैं।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy