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________________ [ ५९ MnAmwww सागारधर्मामृत मधु और पांचों उदंबरोंका त्याग करना ' ये माठ मूलगुण कहे हैं, उनमें मूलगुण धारण करानेवाले आचार्यको इतना स्मरण और रखना चाहिये कि इन्हीं मूलगुणोंको अन्य आचार्योंने दूसरी तरह से लिखा है, वही 'वा' शब्दसे दिखलाते हैं । ऊपर जो पांच उदंबर फलोंका त्याग करना कहा है उनके बदलेमें श्री समंतभद्राचार्यने हिंसा, झूठ, चोरी, परस्त्री और परिग्रह इन पांचों पापोंका स्थूलरीतिसे अर्थात् एकदेश त्याग करना 'कहा है अर्थात् उनके मतमें पांचों पापोंका एकदेश त्याग तथा मद्य मांस मधुका त्याग ये ही आठ मूलगुण हैं इसीतरह भगवजिनसेनाचार्यका यह मत है कि स्वामी समंतभद्राचार्यने जो आठ मूलगुण कहे हैं उनमें मधुके बदले जूआ खेलनेका त्याग करनी चाहिये अर्थात् उनके मतमें पांचों १-मद्यमांसमघुत्यागैः सहाणुव्रतपंचकं । अष्टौ मूलगुणानाहुर्गहिणां श्रमणोत्तमाः ॥ (स्वामिसमतंभद्राचार्यः) ___ अर्थ-मद्यमांस और मधुके त्यागके साथ पांचों अणुव्रतोंका पालन करना गृहस्थोंके आठ मूलगुण हैं ऐसा गणधरादि देवोंने कहा है। २ हिंसासत्यस्त्येयादब्रह्मपरिग्रहाच्च बादरभेदात्। द्यूतान्मांसान्मद्याद्विरतिहिणोऽष्ट संत्यमी मूलगुणाः ॥ (श्रीभगवजिनसेनाचार्यः) अर्थ-हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और परिग्रह इन पांचों पापोंको स्थूलरीतिसे त्याग करना तथा जूआ मांस और मद्यका त्याग करना ये | गृहस्थोंके आठ मूलगुण होते हैं।
SR No.022362
Book TitleSagar Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAshadhar Pandit, Lalaram Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1915
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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