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तीसरा अध्याय . में जन्म लेता है। यहाँ पर भी उसे जाति, कुल, वैभव, रुप, सौभाग्य आदि सम्पदा तथा सम्यक्त्व आदि प्रशस्त गुण प्राप्त होते हैं। इस प्रकार सुख की परम्परा का भोग करते हुए वह श्रावक आठ भवों के अन्दर ही नियम से मोक्ष प्राप्त करता है 158 । मुनि आचार उपादेय :
उक्त विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि मुनि आचार तथा गृहास्थाचार दोनों में मुनि का आचार परम उत्कृष्ट होने के कारण उपादेय है। इसका स्वाभाविक फल मोक्ष-प्राप्ति है। गृहस्थाचार का वैषयिक फल स्वर्ग एवं परम्परा से मोक्ष-प्राप्ति है। अतः इन दोनों आचारों में मोक्ष की दृष्टि से मुनि-आचार अत्यंत महत्वपूर्ण है 159। ___ इस प्रकार यह निर्विवादतः सिद्ध है कि जो मुनि गुप्ति, समिति, धर्म, अणुप्रेक्षा, महाव्रत
और रत्न-त्रय आदि आचार पद्धति का सम्यक् पालन करता है, उन्हें एकान्तिक, आत्यन्तिक, निरतिशय, अनुपम एवं बाधारहित प्रशम सुख की प्राप्ति होती है। अतः मुमुक्षुओं के लिए मुनि-आचार ही आचरणीय हैं।