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1.
प्रवचनसार, आचार्य कुन्दकुन्द, तृतीय अधिकार, गा० 30-31, पृ० 285-88
2. अनुप्रेक्षा मनसा परिवर्त्तमागमस्य । प्रशमरति प्रकरण, 9, का० 176 की टीका, पृ० 122 भावना द्वादश विशुद्वाः । वही, 8, का, 149-150, पृ० 102-103
3.
भावयितव्यम
4. वही, 8, का० 149 की टीका, पृ० 103
5.
इष्ट जन संप्रयोग
104
6. एवं..
7.
.........................
सन्दर्भ-सूवी
.. मोक्षचिन्तायामेव। वही, पृ० 104
13: तथाऽशुचित्व भावना
14. अशुचिकरण
15. माता भूत्वा दुहिता
16. वही, पृ० 156
17. मिथ्या दृष्टिर विरतः
सर्वाण्य नित्यानि । प्रशमरति प्रकरण, 8, का० 151, पृ०
तथा अशरणत्वम्..
8.
जन्म जरामरण
9. वही, का० 150, पृ० 103
10. एकस्य जन्ममरण
11. प्रशमरति प्रकरण, 8, का० 150, पृ० 103 12. अन्याऽहं
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. . क्वचिदपि शरणम् । वही, 8, का० 150 को टीका, पृ० 103 क्वचिल्लोके । वही, 8, का० 152, पृ० 104
कार्यम् । वही, 8, का० 153 पृ० 105
शोक कलिः । वही, 8, का० 150, पृ० 103 • शुचित्वादिका । वही, पृ० 103
भवति चिन्त्यः । वही, 8, 155, पृ० 106
शत्रुतां चैव। प्रशमरति प्रकरण, 8, का 156, पृ० 107
.. तन्निग्रहे तस्मात् । वही, 8, का० 157, पृ० 108
संवरो वरददेशितचिश्चन्त्यः । वही, का० 158, पृ० 109
18. यापुण्य 19. प्रशमरति प्रकरण, 8, का० 159, पृ० 109 20. वही, पृ० 109