________________
101
चतुर्थ अध्याय 62. एवमेषामष्टानामपि कर्मणामुत्तर प्रकृतयः...................... तत्रापि विंशत्युत्तर प्रकृति शतस्य
बन्धः। प्रशमरति प्रकरण, 3 का० ऊ की टीका, पृ० 27 63. एवमियं प्रकृतिरनेक विथा द्वाविंशत्युत्तरशत भैदा इत्यर्थः। तत्याश्चप्रकृतेः ......... बन्थ
विशेषाच्योदय इति। वही, 4, का० 36 की टीका, पृ० 28 64. गोम्मटसार (कर्मकाण्ड), गा० 21 65. प्रशमरति प्रकरण, 5, का० 39, पृ० 31 66. वही,2, का० 3 की टीका, पृ० 25 67. वही, 5, का० 55, पृ० 40- - 68. तश्च घटीययनत्रन्यायेन ....... रागादिपरिणामः। प्रशमरति प्रकरण, 5, का 56 की टीका,
पृ० 40 69. प्रवचनसार, तात्पर्यवृति, गा० 29 70. कर्मोदयात् भवगति............. च सुखा दुःखे। प्रशनरति प्रकरण, ४, का0 39, पृ० 31 71. (क) मोहोन्थोगुण .....दुःखहेतुर्भवति इति दर्शयति। वहीं, 4, का० 39 की टीका, पृ० 31
(ख) दुखद्विद्........... दंखमादते। वही, 4, का० 40, पृ० 31 . 72. मिष्टान्नपान मांसोदनादि.....मीन इव विनाशुपयाति। प्रशमरति प्रकरण, 5, का० 44, पृ०
3। 73. स्नानंगरागवर्ति........ मधुकर इव नाशमुपयाति। वही, 5, का० 43, पृ० 33 74. गतिविअमेगिताकार......... शलभ इव विपद्यते विवशः वही, 5, का० 42, पृ० 32। 75. कलरिभितमधुर गान्धर्व........हरिणइव विनाशमुपयाति। वही, 5, का० 41, पृ० 32। 76. न हि सोऽस्तोन्द्रिय विषयो .....मार्गप्रलीनानि । प्रशमरति प्रकरण, 5, का० 48, पृ० 36 77. कश्चिच्छुभोऽपि विषयः........पुनः सुभी भवति। वही, 5, का०.49, पृ० 37 78. कारण वशेनयधत्.........वा प्रकल्पयति। वही, 5, का० 52 की टीका, पृ० 38 79. वही, 5, का० 52 की टीका, पृ० 38 ......... 80. राग-द्वेषाभ्यामुपहत मानसस्य....... विथत इति। वही, का० 53 की टीका, पृ० 39 81. कर्म विकारो नारकत्वं .......... भवपरम्पराया : मूलं वीजं प्रतिष्ठेति। वही, 5, का०
57 की टीका, पृ० 40 82. कार्याकार्य विनिश्चय..........संज्ञा कलिग्रस्तः । क्लष्टकर्म बन्थन.....बहुविधपरिवर्तनाप्रान्तः।
वही, 1, का० 21-22, पृ० 17