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पम याय
मोक्ष - विमर्श
मोक्ष - विमर्श : __ भारतीय दर्शन में मोक्ष विमर्श एक महत्वपूर्ण विषय है। विशेषकर जैनधर्म दर्शन में इस पर गहन विचार किया गया है और जीव का परम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति ही बतलाया गया है।
जैन वांगमय के अधिकांश शास्त्र मोक्ष-मूलक हैं। इनमें पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, तत्वार्थसूत्र, तत्वार्थश्लोक वार्तिक, तत्वार्थ वृत्ति, सर्वार्थसिद्धि, तत्वार्थधिगमभाष्य, भगवती आराधना, तत्वार्थसार, मूलाचार, सिद्धांतसंग्रह तथा द्रव्यसंग्रह आदि ग्रन्थ प्रमुख हैं जिनमें मोक्ष के स्वरुप आदि पर विस्तृत विवेचन किया गया है।
प्रशमरति प्रकरण भी मोक्ष-विषयक शास्त्र है जिसमें मोक्ष के स्वरुप एवं मैदादि पर संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया गया है। मोक्ष-स्वरुप:
प्रशमरति प्रकरण में मोक्ष का अर्थ मुक्त होना बतलाया गया है। इसमें मोक्ष के स्वरुप का कथन किया गया है तथा इसे परिभाषित कर बतलाया गया है कि बन्ध-हेतुओं के अभाव
और निर्जरा से सबकर्मों का आत्यान्तिक क्षय होना ही मोक्ष हैं, क्योंकि बन्ध-प्रकृतियों के नष्ट होने पर ही मोक्ष होता है। अतः समस्त बन्ध प्रकृतियों का समूल उच्छेद होना मोक्ष है।
मोक्ष प्राप्त करने वाला जीव मुक्त जीव कहलाता है। मुक्त जीव का सुख सिद्धत्व पर्याय की तरह ही सादि, अनन्त, नित्य, अनुपम, बाथा एवं रोगों आदि भय से सर्वथा रहित है। ऐसे मुक्त जीव क्षायिक सम्यक्त्व, केवल ज्ञान और केवल दर्शन रुप स्वभाव से युक्त हो जाते हैं। किन्तु सुख, ज्ञान, दर्शन, सम्यक्त्व आदि स्वाभाविक गुण अपनी चरम सीमा को प्राप्त होकर सदैव प्रकाशमान रहते हैं।
प्रशमरति प्रकरण में मुक्त जीव के संबंध में सक्षेप में बतलाया गया है कि मुक्त जीव