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|| इन्द्रिय-समुद्घातद्वारवर्णनम् ॥
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इन्द्रियो छे, पृथ्विकायादि ५ स्थावरने केवळ स्पर्श इन्द्रिय छे, द्वीन्द्रियने स्पर्श तथा रसनेन्द्रिय, श्रीन्द्रियने स्पर्शन - रसना - घ्राणइन्द्रिय, ने चतुरिन्द्रियने श्रोत्रेन्द्रिय सिवायनी ४ इन्द्रियो के ए संख्या द्रव्यइन्द्रियोनी अपेक्षाए जाणवी. अन्यथा लब्धिरूप भावइन्द्रिय तो दरेक जीवमात्रने पांच पांच छे. सर्वज्ञ सिवायना सर्व जीवने इन्द्रियद्वारा तथा मनद्वारा ज्ञान थइ शके छे, ने सर्वज्ञ भगवानने इन्द्रियो छे, पण ज्ञानप्रासिमां कारण पणे प्रवर्तती नयी, कारणके ऐन्द्रियज्ञान अन्तर्मुहूर्त्त काळे थाय छे, ने सर्वज्ञने तो ए कज समयमा सर्वज्ञान थाय छे, माटे ज श्री सर्वज्ञने १० प्राणमांथी ५ प्राण गणाय. पुनः दरेक जीवने इन्द्रिय पर्याप्त पूर्ण कर्या बाद इन्द्रियद्वारा ज्ञानप्राप्ति होइ शके ॥ इति इंद्रियद्वारं ॥
हवे दरेक दंडके समुद्घातद्वार अवताराय छे, त्यां प्रथम मणुयाणं सत्त समुग्धाया - मनुष्योने ७ समुद्घात हो य, तेमां वेदनाकषाय ने मरण ए ३ समु० सर्व मनुष्यने होय, वै० समु० वै० लब्धिवाळा कोइक गर्भज मनुष्यने, तैजस समु० पण तेजसलब्धिवाळा कोइक मनुष्यने, आहा० समु० कोइक चौद पूर्वधर मुनिने अने केवलिसमुद्घात केलाएक केव
भगवान होय पण सर्व केवलिने नहिं, कारणके अन्तर्मु० थी ६ मास सुधीनुं आयुष्य शेष रहेतां केवलज्ञान पामेला जीवो निश्रय समुद्घात करे अने वीजा ६ मासथी समयादि अधिक आयुय बाकी रहेतां केवळज्ञान पामेला जीवो समुद्घात करे अथवा न पण करे एम ( श्री आव० वृत्तिमां ) कह्युं छे. अथवा दरेक केवलिने वेदनीयादि ३ अवाति कर्मनी स्थिति आयुष्य करतां अधिकज होय एवो नियम नहिं होवाथी पण कोइ केवळी समु०