________________
(-७८)
|| दंडवस्तरार्थः ||
श्या नहिं पण स्वाभाविक लेश्या त्रण ज छे, परन्तु तेजोलेश्या एमरणपामेला इशान सुधीमांनो कोइ देव बादर पृथ्वीपणे बादर ज
पणे अथवा बादर प्रत्येक वनस्पति पणे उत्पन्न थाय तो उत्पन्न थती वखते ज अपर्याप्त अवस्थामा अन्तर्मु० सुधी ते पृथ्व्यादिने तेजोलेश्या होय छे, ने त्यारबाद ते जीवने आखाभव सुधी ३ लेश्याओ ज जुदे जुदे अन्तर्मुह प्राप्त थाय छे, परन्तु तेजोलेश्या कदी पण प्राप्त थती नथी. अने शेष सूक्ष्म पृथ्व्यादि भेदोमां देवनो जीव आवी शकतो नथी माटे तेओने चोथी तेजोलेश्यानो कदी पण संभव नथी.
तथा १० भुवनपतिमा असुरकुमार निकायना जे १५ परमाधार्मिक देवो छे तेओने फक्त कृष्णलेश्या छे, ने बाकीना असुर कुमारनिकायी देवोभां केटलाएक देव कृष्णलेश्यावाळा, केटलाएक नीलेश्यावाळा-केटला एक कापोतवाला ने केटलाएक तेजोलेश्याalळा पण छे, ए रीते चार प्रकारना असुरकुमार निकायी देवो छे. पण एक देवने जुदे जुदे वखते चारे लेश्या छे एम नहि, कारणके देवोनी लेश्या अवस्थित छे तथा जेम असुरकुमार निकायी देवो ४ लेश्यावाळा ह्या तेवी ज रीते शेष ९ भुवनपति अने व्यन्तरनी पण सर्व (१६ ) निकायोमां चार चार लेश्या जाणवी.
- तथा दंडकमां अनधिकारी सम्मू० तिर्यच अने सम्मू० मनुष्यने पण प्रथमनी ३ लेश्याओ जाणवी ॥ इति लेश्याद्वारम् ॥
·
ed start isai Haarai ग्रन्थकर्ता कहे छे के इंदियदारं सुगमं -- इन्द्रियद्वार सुगम छे माटे तेनुं विवेचन करातुं नथी, छतां विशेष समज आ प्रमाणे
नरकनो १ – भुवनपतिना १० - गर्भजतिर्यच १ - गर्भजमनुष्य १- व्यन्तर - ज्योतिषी ने वैमानिक ए १६ दंडकमां सर्व जीवने ५