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________________ ॥ लेश्या-इन्द्रिय-समुद्घातद्वारवर्णनम् ॥ (७७) जोइसिय तेउलेसा, सेसा सव्वे वि हुंति चउलेसा । इंदियदारं सुगमं, मणुआणं सत्त समुग्घायो ॥१५॥ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ ज्योतिष्कास्तेजोलेश्याकाः, शेषाःसर्वेऽपि भवंतिचतुर्लेश्याकाः इन्द्रियद्वारं सुगम्यं, मनुजानो सप्त समुद्घाताः ॥१५॥ ॥शब्दार्थः ॥ जोइसिय-ज्योतिषीदेवो इंदियदारं-इन्द्रियद्वार तेउलेसा-तेजोलेश्यावाळा सुगम-सुगम छे सेसा-बाकीना .. मणुआणं-मनुष्योने सव्वे वि-सर्वे पण दंडको सत्त-सात हुँति-छे समुग्घाया-समुद्घात छे चउलेसा-चार लेश्यावाळा गाथार्थः-ज्योतिपीदेवो तेजोलेश्यावाला छे, अने बाकीना सर्वे दंडक ४ लेश्यावाला छे. इन्द्रियद्वार सुगम छे. मनुष्यने सात समुद्घात छे. . विस्तरार्थ:--ज्योतिषीदेवो सर्वे तेजोलेश्यावाला छे, अने शेष पृथ्वी-अप्-वनस्पति-१० भुवनपति ने व्यन्तर ए १४ दंडकमां चार चार लेश्या छे, एम सामान्यथी कां, अने विशेषतः आ प्रमाणे___ पृथ्वी ने जळ-ए बे बादरमा ज प्रथमनी चार लेश्या छ, ने सूक्ष्मपृथ्वी अने जळमां प्रथमनी त्रण ज लेश्या छे, तथा वनस्पतिमां बादरपर्याप्त प्रत्येक वनस्पतिमां.ज ४ लेश्या छे, ने बीजी सर्व व. नस्पतिमां ३ लेश्या छे. तेमां पण दरेक बादर पृथ्व्यादिने ४ ले
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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