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॥ दंडकविस्तरार्थः ॥
रत्नप्रभा ने शर्कराप्रभामां सर्वनारकोने कापोतलेश्या छे, अने वालुकाप्रभामां पल्योपमना असंख्यातमा भोग अधिक ३ प ल्योपमना आयुष्यवाळा सुधीना नारकोने कापोत लेश्या छे, ने तेथी उपरांत आयुष्यवाळाने नीललेश्या छे, तथा पंकप्रभामा सर्व नारकने नील लेश्या छे, अने धूमप्रभामां पल्यो० ना असं० मा भाग अधिक १० सागरोपमना उत्कृष्ट आयुष्यसुधीना नारकोने नीललेश्या छे, अने तेथी उपरांत आयुष्यवाळा सर्वनारकोने नीललेश्या छे, अने तेथी उपरांत आयुष्यवाळा सर्व नारकोने कृष्णलेश्या छे, तथा छठ्ठी अने सातमी नरकमां सर्वने कृष्णलेश्या छे. अहिं प्रथम पृथ्विथी बीजी पृथ्विमां अधिक मलिन लेश्या यावत् सातमी सुधी अधिक अधिकतर मलिन लेश्या जाणवी ए लेश्याओ आयुष्यपर्यन्त अवस्थित जाणवी.
अग्नि- वायु -अने विकलेन्द्रियने प्रथमनी त्रण अशुभ कुष्णनील-ने कापोत लेश्या छे. पण एमांना एक जीवने एक अन्तर्मु० सुधी एकज लेश्या होय छे.
वैमानिक देवोमां - १-२ कल्पे तेजो लेश्या, ३-४-५ कल्पे पद्म लेश्या अने त्यार पछी ६ हा कल्पथी सर्वार्थ सुधी सर्वत्र सर्व देवोने केवल शुक्ल लेश्या छे, १ ला कल्पथी उपर उपरना स्वर्गी अनुक्रमे अधिक अधिकतर विशुद्ध लेश्या होय छे, अने ए Tufanit श्याओ स्व स्व आयुष्य पर्यन्त अवस्थित छे.
अवतरण - आ गाथाना पूर्वार्धमा लेश्या अने उत्तरार्धमां ( त्रीजा चरणमां ) इन्द्रियद्वार अने ( चोथाचरणथी ) समुद्घा - तद्वार कहेवाय है.
॥ मूळ गाथा १९ मी. ॥