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॥ दंडकविस्तरार्थः ॥
॥ संस्कृतानुवादः ॥ सर्वेऽपि चतुष्कषाया लेश्याषटकं गर्भजतियग्मनुजयोः । नारकतेजोवायुविकला वैमानिकाच निलेश्याः ॥ १४ ॥
॥ शब्दार्थः ॥ सव्वे-सर्व
नारय-नारक इंवि-पण
तेऊ-अग्निकाय चउ-चार
वाऊ-वायुकाय कसाया-कषायवाळा विगला-विकलेन्द्रियो लेस-लेश्या
माणिय-वैमानिकदेवो छगं-६ (छ)
ति-त्रणगतिरिय-गर्भनतिर्यच लेसा-लेश्यावाला मणुएसु-मनुष्योमा ___ गाथार्थ:-सर्वे जीवो चारे कषायवाला छे. गर्भन तिर्यच अने मनुष्योमा ६ लेश्या, अने नारक-अग्निकाय-वायुकाय-विकलेन्द्रिय-तथा वैमानिक देवोने ३ लेश्या छे. विस्तरार्थ:-हवे आ गाथामां कषाय तथा लेश्याहार कहे छे.
सम्वेवि चउकसाया-सर्वे दंडको चार कषायवाला छे. त्यां साते नारकना नारकोने एक बीजापर वैरभाव होवाथी क्रोधवाला छे, तेमन मान-माया-अने लोभ कषायी पण छे. तथा दे. वोमां पण परस्पर वैरभाव छ, एक बीजानी साथे युद्ध करे छे, कोइ कोइनी देवांगनाओ उपाडी जाय छे, इन्द्रो परस्पर विमानोना भाग माटे युद्ध करे छे, एक वीजानी प्रभुता सहन करता नथी, माटे देवमां पण चारे कषाय रहेला छे, तेमा ९ अवयक अने ते करतां पण ५ अनुतरवासी देवोनो कषाय अतिमंद थे, त्यां परस्पर युद्ध-लडाइ-झगडा-इर्ष्या-अभिमान छे नहिं, परन्तु अ