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________________ ॥ संस्थानद्वारवर्णनम् ॥ (७३) दा० शरीरनो आकार ध्वजा-पताका सरखो छे, अने उत्तरवैक्रिय शरीर रचे ते पण मूळ शरीरना आकारेज ( एटले पताकाने आकारेज) रचे छे, तथा अग्निकायी एक जीवना औदा० शरीरनो आकार सोय सरखो छे, अने जळकायी एक जीवना औदा० शरीरनो आकार परपोटा सरखो अर्ध वर्तुल छे. पुढवीमसूरचंदाकारा संठाणओ भणिया-आकारवडे पृथ्वी मसूर अने चंद्र आकारनी कही छे. अर्थात् पृथ्विकायी एक जीवना औदारिक एक शरीरनो आकार मसरनी दाळ अथवा अर्धचंदना आकार वाळो छे. ए प्रमाणे शास्त्रमा जे संस्थानो कह्यां छे, ते एकेक शरीरने आश्रयि जाणवां, अने ते एकेक शरीर दृष्टिगोचर नहिं होवाथी ते संस्थानो पण दृष्टिगोचर थतां नथी, फक्त वनस्पति जीव महाकायावाळो होवाथी तेनुं अनेकविध सं. स्थान तो प्रत्यक्ष छे. पुनः ए संस्थानो बादरस्थावरनी अपेक्षाए छे, अने सूक्ष्म जीवोमां सूक्ष्म वनस्पतिनुं संस्थान स्तिबुक आकार- एटले प्रायः घन गोळाकार छे. वीजा सूक्ष्मजीवोनो आकार बादरवत् छे के घन गोलाकार छे ते मारा जाणवामां नथी इति संस्थानद्वारम् अवतरण-आ गाथाना प्हेला चरणमां सर्व दंडकने का. य केटला होय ? ते, अने शेष त्रण चरणमां कया दंडके कइ लेश्या होय ? ते कहेवाय छे. ॥ मूळ गाथा १४ मी.॥ सव्वे वि चउकसाया, लेस छगं गम्भतिरियमणुएसु । नारय तेऊ वाऊ, विगला वेमाणि यति लेसा ॥१४॥
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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