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________________ (७२) ॥ दंडकविस्तरार्थः॥ नानाविधाध्वजसूचीबुबुदाश्च वनवायुतैजसपूकायिकाः । पृथ्विमसूरचंद्राकाराः संस्थानतो भणिताः ॥ १३ ॥ ॥ शब्दार्थः ॥ नाणाविह-नाना प्रकारचें । अपकाया-अपकायतुं (-अनेकप्रकारच्) | पुढवी-पृथ्विकाय धय-ध्वजना आकारनु मसूर-मसूरनी दाळ सूई-सोयना आकार- चंदाकारा-अर्धचंद्रना बुब्बुय-परपोटाना आकार आकार वाली वण-वनस्पतिकायर्नु संठाणओ-संस्थानथी वाउ-वायुकायर्नु (-आकारथी) तेउ अग्निकायनें भणिया-कही छे. गाथार्थ:-वनस्पति कायर्नु (संस्थान ) अनेक प्रकारचें, वायुकायनु ध्वजाने आकारे, अग्निकाय सोयने आकारे, अपकाय पाणीना परपोटाने आकारे, अने पृथ्विकाय आकार बडे मसूरनी दाळ अथवा अर्धचंद्रना आकारे कहेली छे. विस्तरार्थः--आ गाथामां पृथ्विकायादि ५ स्थावरोर्नु संस्थान कहे छे ते आ प्रमाणे-- वण वाउ तेठ अपकाया-वनस्पति-वायुकाय-अग्निकाय -ने जळकायन संस्थान अनुक्रमे नाणाविह धय सूइ बब्बुय-अ. नेक प्रकारच्-ध्वना सरग्वं, सोय सरखु, ने परपोटा सरखं छे, अर्थात् वनस्पतिनुं शरीर अनित्थंस्थ (-अमुक प्रकारनु छ एम नहिं माटे अनियत ) आकारवाळ श्री तत्वार्थवृत्तिमां कहेल छे. कारण के कोइ वनस्पति केवा आकारनी ने कोइ वनस्पति केवा आकारनो होय छे माटे वनस्पतिन संस्थान अनेक आकारतुं कहेल छे, तथा वायुनुं संस्थान एटले वायुकायी एक जीवना औ
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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