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॥ संस्थानद्वारवर्णनम्॥ (७१) शरीर विकुा छतां ते देवने समचतु० संस्थानन कहेवाय, अथवा देखवानी अपेक्षाए उत्तर वैक्रिय देव ६ संस्थानी गणाय पण तेवा व्यपदेशनी प्राधान्यता नथी.
नरतिरिय छसंठाणा-गर्भज मनुष्य अने गर्भज तिर्यच ६ ए संस्थान वाळा होय, एम सामान्यथी कडं अने विशेषतः आ प्रमाणे सर्व युगलिक मनुष्यो युगलिक तिर्यंचो सर्व तीर्थकरसर्व चक्रवर्ति-सर्व वासुदेव-सर्व बळदेव-सर्वपतिवासुदेव-इत्यादि उत्तम पुरुषो समचतुरस्त्र संस्थान वाला छे, सामान्य केवलि विगेरे तथा सामान्य मनुष्यो ६ ए संस्थानवाला छे. तेम युगलिक सिवायना तिर्यच पंचेन्द्रियो पण ६ ए संस्थानवाळा छ, अहिं एक जीवने एक संस्थान भवपर्यन्त होय. - तथा दंडकमां अनधिकारी सम्मू० ' नियंच अने सम्भू० मनु
ध्यने श्री जीवाभिगममा हुंडक संस्थानी कह्या छ, ... हुंडा विगलेदिनेरइया-सर्व विकलेन्द्रियो अने सर्व नारको हुंडक संस्थान वाला छे. एमां नारकोनुं हुंडकसंस्थान तो पां खो उखेडी लीधेला पक्षी सरखं अत्यंत कुत्सित कधुं छे,
अवतरण-आ गाथामां पण पृथ्व्यादि पांच स्थावरनां संस्थान कहेवाय छे.
॥ मूळ गाथा १५ मी.॥ नाणाविह धय सूई, बुब्बुय वण वाउ तेउ अपकाया। पुढवी मसूर चंदा-कारा संठाणओ भणिया ॥ १३ ॥
॥ संस्कृतानुवादः ॥ १ सम्मू० तिर्यंचने छछा कर्मग्रंथना अभिप्रायथी श्री बृ. हसंग्रहणीवृत्तिमा ६ संस्थानी कह्या छे-इति द्रव्यलोकः