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। शरीरावगाहनावारवर्णनम् ॥ कोइस्थाने कानखजुरा विगैरेनी लंबाइ ३ गाउ 'कही छे.
वेइंदिय जोयणे बार एटले द्वीन्द्रियजीवोनी लंबाइ१२ यो. जन छे, त्यां पर्या० द्वीन्द्रिय अने तेमां पण शंख विगेरेनी लंबाइ १२ योजन छे पण दरेक द्वीन्द्रियनी नहिं. एवा मोटा शंख विगेरे स्वयंभूरमणादि महासमुद्रोमां पेदा थाय छे पण आ मनु० क्षेत्रमा नहि.
अवतरण-पूर्व गाथावत् (गाथाना ३ जा चरणथी उत्तर वै० देहनी अवगाहना कहेवाय छे.) जोयणमेगं चारैदि-देहमुञ्चत्तणं सुए भणियं । वेउवियदेहं पुण, अंगुलसंखंसमारंभे॥ ८॥
॥संस्कृतानुवादः ।। योजनमेकं चतुरिन्द्रिय-देहोचत्वं श्रुते भणितं । वैक्रियदेहः पुनरंगुलसंख्येयांश आरंभे ॥ ८ ॥
॥ शब्दार्थः ॥ जोयणं-योजन
भणियं-कधु छे. एग-एक
उब्विय-बैंक्रिय (-उत्तरवैक्रिय) चउरिदि-चतुरिन्द्रियना देह-शरीर देह-शरीरनी
अंगुल-एक अंगुलनो उच्चत्तण-उंचाइ
संग्वंसं-संख्यातमो भाग सुए-श्रुतने विषे
आरंभे-प्रारंभमां
१ आर्यसमाज मतना आचार्य संन्यासी दयानंद सरस्वति आ स्थाने जू पण त्रीन्द्रिय होवाथी जैनोनी मश्करी करे छे के " ३ गाउ जेवडी मोटो जू तो जैनोना माथामांज पडती हशे" पण कृवानो देडको समुद्रनी बात शे जाणे? केवल तेमां तेओनी शास्त्रनी अनभिज्ञता-द्वेषालुता ईर्ष्यालुता ज सूचवे छे.