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________________ ( ६२ ) ॥ दंडक विस्तरार्थः ॥ सर्व महाविदेहमां सदाकाळ अने भरतैर' वत्तमां अव० ना ३-४ ने उत्सना ४-३ आरे. भरत - अवतमां अव०ना ५ मे अने उत्सना ६ है आरे. भरत - भैरवतमां अव०ना ६हे अने उत्सन्ना १ ले आरे. " 99 59 ५०० धनुष्. ७ हाथ. २. हाथ. तथा दंडकमा अनधिकारी संमु०मनुष्यनुं जघ० शरीर उति समये अंगुलनो नानो असं०मो भाग, अने उ० शरीर अंगु० नो मोटो असं०मी भाग जाणवो कारणके ए जीवो अपर्या० अवस्थामांज मरण पामे छे. अथवा मरण पामती वखते पण अनेक जीवो आश्रय कोइ नानी अवगाहनाए मरण पामे तो कोइ मोटी अवगाहनाए मरण पामे एम मरण वखते पण अवगाहनानी विषमतानो अपेक्षाए जघ० वा उ० शरीर संभवे छे. तथा त्रीन्द्रिय जीवोमां पर्या० त्रीन्द्रियनीज अने तेमां पण कानखजुरा विगेरे कोइकनीज ३ गाउनी लंबाई बहारना द्वीप - समुद्रोमां जाणवी. बीजा कीडीआदि त्रीन्द्रियोनी एवटी मोटी अवगाहना संभवे नहि. शास्त्रमां कोइस्थाने एकला कानखजुरानी अने १ भरत - भैरवतमां अवन्ना ३ जा आरामां केटलांक वर्ष सुधी अने उत्सन्ना ४ था आरामां केटांक वर्ष पछी युगलिकपणं होय ते मित्राय न होय.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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