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________________ ॥ किमाहारद्वारवर्णनम् ॥ ( ५३ ) गाथार्थः गर्भजतियैज अने वायुकायने ४ शरीर छे, मनुयोने ५ शरीर छे, अने बाकीना (२२) दंडके ऋण त्रण शरीर छे. ॥ चार स्थावरतुं शरीर अंगुलनो असंख्यातमो भाग छे. विस्तरार्थः — अहिं २४ दंडकमा प्रथम शरीर द्वार उतारतां गर्भजतिर्यंच अने वायुकायने औदा० - वै० - तै० ने कार्मण ए ४ शरीर होय छे, ए सामान्यथी कहुँ अने विशेषतः आ प्रमाणे एक ग० तिर्यंचने २-३ - के ४ शरीर होय छे, त्यां पूर्व भमांथी आवता ग० ति० ने रस्तामां तैजस तथा कार्मण ए बेशरीर होय, त्यार बाद उत्पत्ति स्थाने उत्पन्न थवाना प्रथम समयथीज औदा० शरीर नामनो उदय होवाथी औदा० शरीर सहित ३ शरीर होय अने कोइ लब्धिपर्याप्त गर्भज तिर्यचे तप आदि करवा. थी वै० लब्धि उत्पन्न करी होय ने वैक्रिय शरीरनी रचना करे तो ते वखते वधुमां वधु ४ मुहूर्त्त सुधी वै० शरीर सहित ४ शरीर होय, पण आहा० शरीर तो फक्त चौदपूर्वधर लब्धिवंत मुनि मा ने ज होवाथी गर्भज ति० ने ए शरीर कोइपण काळे न होय पुनः युगलिक तिर्यचने रस्तामां आवतां वे अने उत्पत्ति स्थाने आव्याबाद ऋण शरीर होय पण तेओने व्रत तप आदिना अभावे वै० लब्धिना अभावथी बैं० शरीर न होय तथा दंडक प्रकरणमां अनधिकारी एवा संमू० तिर्यंच पंचेन्द्रियने पण रस्वामां २, अने स्वस्थाने औदा० शरीर सहित ३ शरीर होय. तथा वायुकायम पण सर्व जीवने चार शरीर न होय पण रस्वामां आवताने तै० का० ए बे, स्वस्थाने औदा० सहित ३, ने लाएक लब्धि पर्याप्त बादर वायुकानेज विना व्रतादिके पण तथा स्वभावे वैक्रिय शरीर सहित अन्तर्मु० काळ सुधी ४ शरीर होय ने त्यार बाद पुनः ३ शरीर वाळो ज होय, ने बै० ल -
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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