SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५४) ॥दंडकविस्तस ब्धि वाळा ल० पर्या० बा० सिवायना सर्व वायुकामी जीवोने रस्तामा बे अने स्वस्थाने औदा० सहित ३ शरीर ज होय, तथा गर्भजमनुष्यमां पण रस्तामां आवनारने तै० ने का. मण ए बे शरीर अने स्वस्थाने ३ शरीर तो दरेक गर्भज मनुष्यने अने दंडकमां अनधिकारी संमृ० मनुष्यने पण होय. तथा केटलाएक गर्भज ल० पर्या० मनुष्य के जेओ ए व्रत तप आदि बडे वै० शरीर रचना वखते ४ मुहूर्त सुधो एकज जीव आश्रयि ४ शरीर होय अथवा जेओ ए चौदपूर्वनो अभ्यास करी आहा० लब्धि प्राप्त करी होय तेओने आहा० शरीर रचना वखते अन्तर्मु. काळ सुधी ४ शरीर एक मनुष्य आश्रयि होय छे.. पण एक मनुष्य आअयि ५ शरीरनो संभव नथी. कारणके वै० अने आहा० शरीर समकाळे होय नहि, माटे. मनुष्यमां एक मनुष्य आश्रयि समकाळ २-३ ने ४ शरीर होय अने सर्व मनुष्य आश्रयि तथा एक-मनुष्यने भिन्नकाळ आश्रयि ५ शरीर होय. __ तथा देव अने नारक संबन्धि १४ दंडकने विषे एक जीव आश्रयि रस्तामां आवतां तै० ने का० ए बे, अने स्वस्थाने वै० शरीर होय छे वळी ए जीवो उत्तर वै० पण रचे छे ते पण वैक्रियज नाम वाल होवाथी एक जीवने समकाळे ४ शरीर न गणाय. अने ए जीवोने औदा० 'शरीर तथा आहा० शरीर कोइपण काळे संभवतुं नथी. तथा शेष ७ दंडकोने विषे दरेक चा सर्व जीव आश्रयि रस्ता मां बे अने स्वस्थाने औदा० सहित ३ शरीर होय, इतिशरीरद्वारम् १ देवो उत्तर वैक्रिय करती वखते सिंह-मनुष्य आदि औदा० शरीर सरखां रूप रचे छ पण ते शरीर औदारिक न जाणषां, पण वैक्रिय वर्गणाओने ज आदा० सरखी देखाववाळी कोली जाणवी.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy