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॥ पर्याप्तिद्वारवर्णनम् ॥
(५१) स्त्रीपणुं ने नपुं० पशुं निर्वृत्यादि भेदे त्रण त्रण प्रकारनुं छे, ते आ प्रमाणे लिंग - दाढी- मूछ इत्यादि युक्त देहाकृतिवाळो निर्वृतिपुरुष ( आकार पुरुष ), योनि - स्तन इत्यादि युक्त देहाकृति वाळी निर्वृति स्त्री, अने पुरुषाकारनां केटलांक लक्षण होय ने केटलांक न होय तेमज स्त्री पणानां पण केटलांक लक्षण होय ने केटलांक लक्षण न होय ए प्रमाणे उक्त लक्षणोना भावाभाव युक्त देहाकृति वाळा जीवो निर्वृति नपुंसक कहेवाय. तथा स्त्रीउपर विषयाभिलाषी जीव वेद पुरुष, पुरुष प्रत्ये विषयाभिलाषी जीव वेद स्त्री ने उभयाभिलाषी जीव वेद नपुंसक कहेवाय. तथा पुरुष नहिं छतां जेणे पुरुषनो वेष पहेर्यो होय ते नेपथ्य पुरुष, स्त्री नहिं छतां स्त्रीनो वेष पहेर्यो होय ते नेपथ्य त्री, अने नपुंसक नहिं छतां नपुंसक नो ( - हीझडा वगेरे सरखो ) वेष पहेर्यो हो ते नेपथ्य नपुंसक कहेवाय. ए प्रमाणे ९ भेद छे.
तथा पुरुषादि आकृतिनो द्रव्य वेद अने विषयाभिलाषने भाववेद तरीके गणाय छे. पुनः एक जीवने एकज भवमां पुरुबने ३ द्रव्य वेद अने ३ भाववेद थइ शके, नपुंसकने एकज भवमां नपुं ने स्त्री एबे वेद द्रव्यने २ भाववेद होय, ने स्त्रीने आखा भव सुधी १ द्रव्यवेदने १ भाववेद होय ए वात द्रव्यवेदाश्रयि भाववेद गणवानी पद्धतिए कही, अने द्रव्यवेदना आश्रय विना केवळ भाववेद गणतां स्त्री-पुरुषने नपुंसकने दरेकने ३-३ भाववेद अन्तर्मुहूर्त अन्तमुहूर्त परावृत्ति पाम्या करे छे.
पुरुष वेद वासना अग्नि समान छे, कारणके घासनो अग्नि एकदम भडको थइ तुर्त समी जाय ले, तेम पुरुषवेद एकदम जागृत थइ त्रीना संगमथी तुर्त शमी जाय छे, तथा स्त्रीवेद बकरीनी लींडीयोना अग्नि सरखो छे, कारण के बकरीनी लींडीयोनो अग्नि