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________________ ॥ संज्ञाद्वारवर्णनम् ॥ (१९) युक्त एवो सम्यग्दृष्टिजीव दृष्टिवादोप० संज्ञावाळो गणाय के, पण विशिष्ट श्रुतज्ञानना क्षयोपशमरहित एवा नारक-देव-मनुष्योने तिर्यचो सम्यग्दृष्टि छतां पण दृष्टिवादसंज्ञावाला गणाय नहि. कारणके जो के केटलाएक देवोमां अने तीर्थकर थनारा नारकोमा अने कचित् ग० तिर्यंचोमां विशिष्ट श्रुतज्ञान सद्भावे दृष्टिवादो ५० संज्ञा हसे छतां ते ज्ञान विशेषतः हितमा प्रवृत्ति अने अहितमां निवृत्तिवाळु नहिं होवाथी तेओने अहिं दृष्टिवादो० संज्ञा न गणी होय तेम संभवे छे, (केटलोक भावार्थ श्रीनंदिसूत्रमांयी कह्यो छे.) जेने हेतूप० संज्ञा छ तेने दीर्घका० ने दृष्टिवादो० संज्ञा नथी, जेने दीर्घका० संज्ञा छे तेने हेतू० संज्ञा नथी, अने दृष्टिवादो० संज्ञा होय ने न पण होय. अने जेने दृष्टिवादो० संज्ञा छे तेने हेतू० नयी पण दीर्घ संज्ञा अवश्य छे. श्रीसर्वज्ञने ए त्रणमांनी कोइपण संज्ञा न होय. ॥ इति संज्ञासंवेधः ॥ ॥ २२ गतिद्वारम.॥ . अमुक दंडकमांनो जीव मरण पामीने कया कया दंडकमां जाय-( उपजे ) ए संबंध कहेवो ते गति. ॥ इति गतिकारम् ॥ ॥ २३ आगतिहारम.॥ अमुक दंडकमां कया कया दंडकना जीवो मरण पामी आवोने उत्पन्न थाय ए संबंध कहेवो ते आगति.॥इत्यागतिद्वारम्.॥ अहिं गति-आगतिने प्रसंगे जीवोने परभव गमननो विधि
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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