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________________ ॥ किमाहारद्वारवर्णनम् ॥ (७) विनाज देहने-इन्द्रियपणे परिणमी जाय छे. वळी आ आहार सचित्त-अचित्त-ने मिश्र-एम ३ प्रकारनो, तथा ओज अने लोम एम बे प्रकारनो छे, ( अहिं कवलाहारने दिशिआहार साथे योग्य संबंध नहिं होवाथी कवलाहारने दिशिआहारमा गण्यो नथी, अने ए संबंधि शास्त्रमा उल्लेख नथी.) पुनः आभोगिकने अनाभोगिक एम भेद पण छे, ते भेदो संबंधि विशेष वर्णन ग्रन्थान्तरथी जाणवु. तथा प्रसंगे निराहारीपणुं जीवने क्यारे होय छे ? ते पण कहेवाय छे. त्यां परभवमां वक्रगतिए जतां वे त्रण चार ने पांच समय लागे ते वखते हेलो ने छेल्लो समय वर्जी मध्य समयोमां अनाहारीपणुं होय छे, माटे बे समयनी एक वक्रगतिमां अनाहारीपणुं नथी पण त्रण समयात्मक दिवक्रगतिमां, चार समयात्मक त्रिवक्रगतिमां, ने पांच समयात्मक चतुर्वक्रगतिमां अनुक्रमे १-२-३ समग निराहार छे, ने केवलि समुद्घात वखते ३-४-५ नबरवाला समयोमा अनाहारीपणुं छे, ने अयोगी तथा सिद्धजीवो सदाकाळ अनाहारी छे. ॥ इति किमाहारद्वारम् . ॥२०॥ ॥ २१ संज्ञाहारम्.॥ सं-सम्यक् प्रकारे ज्ञान-जाणवू ते संज्ञा. ३ प्रकारनी छे, त्यां प्रथम हेतु-कारण-निमित्त एटले दृष्ट अने अनिष्टनी प्राप्तिपरिहार रूपकारणना उपदेश-कथनवाळी. ते हेतूपदेशिकी संज्ञा. आ संज्ञा व्यक्त ( वा बुद्धिपूर्वक-अभिसंधिज) अने अव्यक्त (वा अनभिसंधिज) एम वे प्रकारनी छे, त्यां एकेन्द्रियोने अनभिसंधिज हेतूपदेशिकोसंज्ञा छे, कारणके तेओनी आहारादिकमां प्रवृत्ति स्पष्ट
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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