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॥ दंडकविस्तरार्थः ॥
प्रश्न:-दिशाओ १० छतां ६ दिशिथी आहार ग्रहण केम कां?
उत्तरः-विदिशाने पडखे रहेली दिशामा अन्तर्गत गणतां ६ दिशा पण कही शकाय, माटे अत्रे ६ दिशिथी आहार ग्रहण का, पुनः वास्तविक रीते क्षेत्रविदिशा एकेक आकाश मदेशनी श्रेणिरूप होवाथी आहार्य पुद्गल स्कंध एक प्रदेशात्मक श्रेणिमां अवगाहे नहिं पण जघन्यमां जघन्यथी अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटला क्षेत्रमा अवगाहे छे, अने तेटला अवगाहमां विदिशि प्रदेशो करतां दिशि प्रदेशो असंख्यगुणा संभवे छे, माटे विदिशिने दिशिमां अंतर्गत गणवापूर्वक ६ दिशिनो आहार कह्यो.
प्रश्न:-आ किमाहारद्वारमा आहार्य पुद्गलो कइ वर्गणानां अंगीकार करवां ? ___ उत्तर:-तेजस अने कामण वर्गणा वर्जीने शेष औदा०वैक्रिय-ने आहारक ए ३ भवधारणीय शरीर वर्गणाना पुद्गल स्कंधोनो अहिं आहार अंगीकार करवो, अने कार्मण. पुद्गलनो आहार तो जीवने सयोगिपणा सुधी प्रति समय होय छे, माटे आ किमाहार प्रसंगे ते तै० का० नो आहार अंगिकार न करवो. ए आहार्य पुद्गल स्कंध पण कमीमां कमी अभव्यथी अनंत गुण परमाणुओनो बनेलो होय छे, कारणके तेथी कमी परमाणुओवाळा स्कंधो जीव ग्रहण करी शकतो नथी. पुनः ग्रहण कराता आहारमांथी असंख्यातमा भाग जेटलो आहार आहारपणे परिणमे छे, ने बीजो सर्व आहार गाये ग्रहण करेला घासमांथी जेम केटलोक घास पडी जाय छे तेम तेज समये विनाश पामी जाय छे. अने आहारपणे परिणमता आहारमांनो अनंतमो भाग जीवना आस्वादनमां आवे छे, अने शेष भाग जीवने आस्वादनमां आव्या