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________________ - -- . . (४४) ॥ दंडकविस्तरार्थः॥ - मनःपर्याप्ति-मन योग्य पुद्गलो ग्रहण करी, मनपणे परिणमावीअवलंबीने विसर्जन करवानी शक्ति तेनो काळ इन्द्रिय पर्याप्तिवत् ___पर्याप्तियोमा जे जीवने जेटली पर्याप्तियो पूर्ण करवा योग्य होय छे, तेटली पर्याप्तियो ते जीव उत्पत्तिसमये समकाळे प्रारंभे छे, पण पूर्ण अनुक्रमे करे छे, कारणके प्रथमसमयगृहीत आहारना उपष्टंभथी-( आलंबनथी ) जीवने आहारपर्याप्तिरूप शक्ति सर्वाशे प्रगट थइ, अने शरीरपर्याप्त्यादिरूप शक्तियो देशांशे प्रगट थइ छ, र प्रमाणे प्रारंभ समकाळे अने समाप्ति अनुक्रमे होयछे. तथा जे जीवने जेटली पर्याप्तियो छे, ते जीव तेटली पर्याप्तियो पूर्ण करे ज एवी लब्धिवाळो जीव लब्धिपर्याप्त कहेवाय. ते'लब्धिपर्याप्तपणुं भवना प्रथम समयथी भवना अन्त्यसमयपर्यन्त होय. एनुं आयु उ० ३३ सागर होय. तथा जे जीवने जेटली पर्याप्तियो छे ते जीव तेटली पर्याप्तियो पूर्ण नहिज करे एवी लब्धिवाळा जीवो लब्धिअपर्याप्त कहेवाय, पलब्धि अपर्या०पणुं पण भवना प्रथम समयथी भवना अन्त्य समय सुधी होय छे. आ जीवोनुं आयु उत्कृष्ट अन्तर्मु० होय. तथा जे जीवने जेटली.पर्याप्तियो छे, ते जीवे तेटली पर्याप्तियो ज्यां सुधी पूर्ण नथी करी पण करशे. एवो जीव करणअपर्याप्त, अने पूर्ण कर्या बाद करणपर्याप्त कहेवाय. त्यां करण अपर्याप्तपणुं भवना प्रथम समयथी अन्तम० पर्यन्त, अने करणपर्याप्तपणुं अन्तर्मुन्यून स्वस्वपर्याप्तायुष्य जेटला काळवाळ छे. पर्याप्ति संबंधि विशेष वर्णन प्रथम. नवतत्त्व विस्तरार्थमां विस्तार पूर्वक करेल होवाथी अहिं विशेष वर्णन कयु नथी.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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