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________________ ( ४२ ) ॥ दंडक विस्तरार्थः ।। ॥ १६ उपपातद्वारम् ॥ कया. दंडके एक समयमां केटली जीव संख्या उत्पन्न थाय एम कहे ते उपपातद्वार, अने कया दंडकम केटलाकाळ सुधी कोइपण जीव आवी उत्पन्न थाय नहि ? एम कहेवुं ते उपपात विरह कहेवाय. ॥ १७ चयवनद्वारम्. ॥ कया दंडके एक समयमां केटला जीव मरण पामे तेनी संख्यानो नियम को ते च्यवनद्वार, अने कया दंडकमा केटला काळसुधी कोइपण जीव मरण न पाये ते संबंधि काळ नियम दर्शाववो ते च्यवनविरह कहेबाय. ॥ ॥ १८ स्थितिद्वारम् ॥ कथा दंडके जीवोतुं केटलं आयुष्य होय ते आयुष्यकाळनो नियम दर्शावन ते स्थितिद्वार. ॥ ९९ पर्याप्तिद्वारम् ॥ पर्याप्ति एटले जीवनी आहार ग्रहण करवादिकनी शक्ति, अथवा ते शक्तिनी समाप्ति ते पर्याप्ति कहेवाय, ते पर्याप्त आहार - शरीर - इन्द्रिय- उच्छवास - भाषा ने मन ए प्रमाणे ६ प्रकारनी छे, तेनुं संक्षिप्त स्वरूप आ प्रमाणे m
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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