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॥ योगदारवर्णनम् ॥ (३९) तथा कायाना योग ते आ प्रमाणे-पूर्व भवमांथी परभवमां जवाने कार्मण शरीर कारण भूत छे, ने कार्मण शरीरनी साथे तैजस शरीर सदाकाळ रहेलं होय छे माटे कार्मण शरीरनी सहाय थी ( पूर्वभवथी परभवर्मा जवारूप) आत्मानो जे व्यापार ते कामंण काययोग, अथवा भवधारणीय शरीरव्यापारना अभावे मात्र तैजसकामण कायाद्वारा आत्मानो परभवगमन-परभवोत्पत्ति प्रथमसमये आहारग्रहण-तथा केवलिसमुद्घातना ३-४-५ समये प्रवर्तन रूप जे व्यापार ते,कार्मण काययोग अथवा तैजस का. मंण काययोग.
प्रश्नः--तैजस समुद्घात वखते, आहार पचन समये तैजस कायनो व्यापार प्रगट छे, ने कामणकायनो व्यापार छे नहिं तो ने वखते एकलो तैजसयोग केम न कहेवाय ? .
उत्तर-जे वखते तै० समुद्घातमां, अने आहार पचन व्यापारमा जीव वर्ते छे ते वखते आत्मानुं औदा० शरीर संपूर्ण रचायलं होवाथी औदा० शरीरना आलंबनथी तैजस परमाणुओ वडे पूर्वोक्त कार्य करे छे, माटे प्रयत्नमां औदारिक काय मुख्य छे,
प्रश्नः केवळी समु० ना ३-४-५ समये तै० का० काययोग वडे आत्मा शुं करे छे ? नथी परभवमा जतो, नथी आहार पचन करतो, के नथी आहार ग्रहण करतो, त्यारे तैजस वा का. मेण द्वारा आत्मा ते वखते कइ जातनो व्यापार करे छे ? के जेथी ते वखते तै० का० काययोग कही शकाय.?
उत्तर--सयोगी आत्मा सदाकाळ योग प्रवृत्ति वाळो छे, त्यां जे बखते जे शरीरनुं साधन मले ते वखते ते शरीरद्वारा योग प्रवृतिवाळो होय, अहि समु० वखते औदा० शरीरथी घणे अंशे छूटो पडी गयेलो आत्मा तैजस कामण वडे सर्वांशे व्याप्त होवा