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________________ ( ३८ ) ॥ डकविस्तरार्थ: ॥ मिश्रित, ८अनंतकायमिश्रित प्रत्येक जीवराशिने "आ प्रत्येक जी - वराशि छे" एम कहे ते प्रत्येकमिश्रित, ९रात्री छतां शीघ्रता माटे कहे के " जलदी उठ सूर्य उग्यो" इत्यादि अडामिश्रित, १०७तावळने अंगे दिवस वा रात्रिना एक भागने बीजो भाग कहीये जेम रात्रिनो प्रथम प्रहर छतां मध्यरात थइ कहे ते अडाडामिश्रित. ( ४ ) तथा असत्या मृषा एटले व्यवहार वचन योगना पण १२ भेद छे ते आप्रमाणे - १" हे देवदत्त ! " इत्यादि अन्यने बोलावा रूप आमंत्रणी, २"तुं आ कर " इत्यादि आज्ञा करवा रूप आज्ञापनी ३ "अमुक आप " इत्यादि मांगणी करवा रूप याचनी, ४प्रश्न करबो ते पृच्छिकी, ५ उपदेश आपका रूप प्रज्ञापनी, aats कार्य निवृत्त (प्रतिषेध) करवा रूप प्रत्याख्यानी, ७अनुमति ( मत - अभिप्राय ) जापवा रूप इच्छानुकूलिका, टकोड़ए अभिप्राय पूछवाथी " तने जे ठीक लागे ते " इत्यादि कहें ते अनभिगृहिता, ९ अमुकन करवुं, ने अमुक न करवुं इत्यादि निर्णयात्मक सलाह आपकी ते अभिगृहिता. १० द्वद्यर्थी वा अनेक अर्थी वचन बोलं के जेथी निर्णयात्मक भावार्थ न नीकळे ते सांशयिक, ११ प्रगट रीते जेनो अर्थ समजी शकाय तेवी अथवा स्पष्ट अक्षरो वाळी ( पण अर्थ शून्य ) भाषा बोलवी ते व्याकृत (- व्यक्त ) १२अने गंभीर अर्थवाळी अथवा अस्पष्ट अक्षरवाळी भा षा ते अव्याकृत, आ छैल्ली भाषा हीन्द्रियादि जीवोने होय छे अने रे-लोल-लाल इत्यादि कविताना अलंकारी अर्थ विनाना शब्दो तथा पारणं झुलावतां इत्यादि कार्यमा पथ हललल इत्यादि अर्थ विनाना बोलता शब्दों तो व्याकृत वचन योग ए प्रमाणे सत्यना १०, असत्यना १०, मिश्रना १०, व्यवहार - ना १२ भेद मली ४२ मनोयोग ने ४२ वचनयोग थाय छे.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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