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॥ योगद्वारवर्णनम् ॥
(३७)
तोपण छत्री, दंड धारण करनारनी पांसे दंड होय न होय तोपण दंडी को इत्यादि योगसत्य कहेवाय.
९ बाहुल्यतानी अपेक्षाए कहेतुं ते जेमके पोपटमां पांचे वर्ण( भाव - वर्णादिपर्याय ) छे छतां लीलो कहेवो. भ्रमर पांचे वर्णयुक्त छे छतां काळो कहेवो इत्यादि अल्पत्वनी अविवक्षाए भावसत्य
१० केटलाएक सरखा धर्मवाळी वस्तु साथे बीजी वस्तुनी सरखामणी करवी. जेम मोटा तळावने समुद्र जेवडुं कहेवु, चंद्रमा सरखा कडक गोळ अने कान्तिवाळा मनुष्यना मुखने चंद्रमुख कहेतुं इ. त्यादि उपमासत्य. ए प्रमाणे १० प्रकारनां सत्य कहां.
(२) तथा ? क्रोधर मान ३माया४लोभ५ प्रेम ६ हास्य भय- अने८द्वेषथी उत्पन्न थयेली अस यभाषा ते क्रोध निःसृत, माननिःसृत इत्यादि कहेवाय. ९ अने बनावटी कथावार्ताओ करवारूप भाषा कथानिःसृत, १० अने खोडं कलंक आपवारूप उपघातनिःसृत ए रीते १० प्रकारना असत्ययोग छे.
३ पुनः मिश्रयोग १० प्रकारनो ते आ प्रमाणे - १ " आजे. आ नगरमा दशेक बाळक जन्म्या छे. " इत्यादि उत्पत्तिनी अनिश्चित 'संख्या की ते उत्पन्नमिश्रित २ दशेक मरण पाम्या छे इत्यादि विनाश संख्या कहेवी ते विगतमिश्रित, ३ दशेक जन्म्या, अने दर्शक मरण पाम्या इत्यादि उभयसंख्या कहेवी ते उत्पन्नविगत मिश्रित, ४ शंखादि वणा जीवता अने थोडा मरेला देखी सर्व समुदायमा "आ जीव राशि छे." एम कहेतुं जीवमिश्रित, ५ घणा मरेला अने थोडा जीवता देखीअ "जीवराशि " कहे ते अजीवमिश्रित, ६आ राशिमां आटला जीवता छे ने आटला मरण पाम्या छे एम आसरे संख्या कहे ते जीवाजीवमिश्रित, प्रत्येक ७ जीवमिश्रित साधारण वनस्पतिजीवराशिने साधारणराशि कहे छे ते साधारण
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