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________________ (३४) ॥ दंडकविस्तरार्थः॥ ____ अहिं अज्ञानी जीव घट पदार्थने देखी पट कहे अथवा ओ. लखे छे एम नथी पण घट पदार्थमां जेटला सत् धर्मों अने जेटला असत् धर्मों छे तेटला सर्व धर्मोए करीने युक्त नथी मानतो पण केटलाक धर्मोंने माने छे, वळी केटलाफ धर्म माने तेमां जे धर्म जे रूपे रहेलोछे ते रूपेज माने एवो पण नियम नथी. माटे घटने घट माने तोपण मिथ्यादृष्टिनुं ज्ञान अज्ञान गणाय छे. आ ३ अज्ञाननो द्रव्य-क्षेत्र-काळ-ने भाव ए चार प्रकारनो विषय अज्ञानमां ग्रहण थयेला द्रव्यादि जेटलो अनियमित प्रमाणे जाणवो. ॥ इति त्रयोदशमज्ञानद्वारम्. ॥ १३ ॥ ॥१४ योगहारम् ॥ योग एटले आत्मानो पौगलिक व्यापार. ते ४ मनयोग ४ वचनयोग अने ७ काययोग मळी १५ प्रकारनो छे, त्यां सत्यअसत्य-मिश्र-ने व्यवहार ए नामे ४ मनयोग तथा ४ वचनयोग छ, अने औदा०-औदा०मिश्र-वैक्रिय-वैक्रियमिश्र-आहारक-- आहारकमिश्र अने तैजसकार्मण ए नामे ७ प्रकारनो. काययोग छे. तेनुं स्वरूप आ प्रमाणे.. काययोगद्वारा मनोवर्गणानां पुद्गलो ग्रहण करी मन (चिंतवन)पणे परिणमावी अवलंबीने विसर्जन करवां ते मनोयोग. एमां मन ते पुद्गल द्रव्यनो समुदाय छे, अने ते पुद्गल समुदाय छे, अने ते पुद्गल समुदायने काययोगथी ग्रहण-परिणमन-अवलंबन-ने विसर्जनरूप व्यापार ते काययोग विशेषतुं नाम मनोयोग छे. काययोगवडे भाश वर्गणानां पुद्गलो ग्रहण करी भाषापणे ग्मावी-अवलंबी-ने विसर्जन करवारूप आत्मानो व्यापार ते
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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