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नथी. कारण ते स्यले कषायोदयनी अभाव छे. पथी एसिद्ध थयु के- कषायोदय अवस्थामा विद्यमान आत्मपरिणति विशिष्ट कर्मबंधमां हेतु थइ शके. एन रहस्य पश्चम कर्मग्रन्थनी टीकापां अध्यवसायनी व्याख्या करतां श्री देवेन्द्रसूरिमहाराजाए जणाव्यु छे के “अध्यवसामान्यध्यवसायाः, ते चेह कषायजनिता जीवपरिणामविशेषाः " यद्यपि उपशांतमोहादि त्रण गु. गस्थानकोमा शातावेदनीयनो बंध वर्ते छे, तो पण तेने (ते बंधने ] अध्यवसायनिमित्तक स्वीकारेल नथी. कारणके श्री. पंचसंग्रहादिमां तेनी द्विसमय मात्र अल्पस्थिति प्रतिपादन करेल छे. बंधपरत्वे करेल आ संक्षिप्त विवेचन एन जणावेछे केजीवाजीवादि नवतत्वो पैकी पांचमा आश्व तत्व अने आठमा बंध तत्वना फलरूपे मंसारिजीवो शुभाश्रवद्वारा करेल शुभ कर्मवंधना प्रतापे शुभ दंडकोषां एटले देव मनुष्यना दंडकोमा अने अ. शुभाश्रवद्वारा करेल अशुभ कर्मबंधना प्रतापे नरकनियंचोना अशुभ दंडकोमा उत्पन्न थायछे. ज्यां उत्पन्न थया पछी विशिष्टमंज्ञावाला वे ते देवादि जीवोने ए प्रश्नो प्रादुर्भवे छे, जे-आ आत्माए - चोवीश दंडको पैकी कया कया दंडकोमा कयाकया हेतुओथी केवी केवी स्थिति अनुभवी ? अनुत्तरदेवो पण जेनी निरंतर अभिलाषा करी रह्या छे, अने जे निर्वाणपदनुं परम साधन छे, एवा मनुष्यभव रूप उच्च कोटोनुं स्थान विद्यमान छतां पण कया कया हेतुओथी आ जीव ते स्थान मेळववामां मंदभाग्य थयो?,कदाच पाम्यो, तोपण कया कया साफल्य प्रतिबंधकहेतुओथी यथार्थलाभ मेलववा असमर्थ थयो ? अने निगोदादिमां अनन्त कालसुधी रह्यो ? हवे पछी एवा कया कया उत्तमसाधनो सेववा जोइये ? के जेथी दीर्घकाळ सुधी अनुभवेल क्लिष्ट दुःखमय स्थिनिने न पामे ! इ. त्यादि अनेकप्रश्नो रूपी ग्रीष्मकाळनी तृषाने शांत करवामां