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॥ परमोपकारि पूज्यपाद सद्गुरु श्रीमद्विजय
नेमिसूरीश्वरेभ्यो नमोनमः ॥ ॥ श्रीदण्डक विस्तरार्थः ॥
में प्रस्तावना
( शार्दूलविक्रीडित छंद.) जेनो उत्तम बोध शोध करतो तत्त्वार्थना तत्त्वनी, एकी साथ प्रशंसना मतिधनो जेना करे सत्त्वनी; पाम्यो हंश्रतबोध योग विधिने जेना प्रसादे करी, वढं 'श्रीगुरु नेमिसूरि ' चरणे ते उपकारो स्मरी ॥१॥
सर्वज्ञ शासनरसिक प्रियबंधुओ ? निष्कारण जगबंधुभावकरुणासिंधु-आसन्नोपकारि-श्री महावीरप्रभुनो-अतीत भावि वर्तमान समस्ततीर्थपतिना वचनने अनुसरनार-अचल सिद्धान्त ए फरमावेछे के- संसारि जीवोने कोनो बंध या मोक्ष पोतानी अध्यवसायपरिणतिने आधीन छे.- तात्पर्य ए के- अशुभ अध्यवसायोना योगे कर्मोनो बंध अने तेथी विपरीत अप्रतिपाति उत्तम अध्यवसायोना योगे मोक्ष थायछे. एज रहस्यने प्रकट करता पूज्यपाद महोपाध्याय न्यायाचार्य श्रोमयशोविजयजी म.. हाराज प्रतिपादन करेछे के-'मन एव मनुष्याणां,कारण बन्ध मोक्षयोः ॥' तेवा प्रकारनो विशिष्ट कर्मबंध पण चउद गुणस्थानको पैकी दशमा सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानक सुधीज होयछे. परंतु तेथी अग्रेतन उपशान्त मोहादि चार गुणस्थानकोमा ते संभवतो