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॥ दर्शनज्ञानद्वारवर्णनम् ॥ (३१) ३ अवधिज्ञानीने अवधिज्ञानवडे प्रथम जे सामान्यबोध थाय ते अवधिदर्शन. सिद्धान्तमा विभंगज्ञानिने पण होय छे. __ ४ केवळ ज्ञानवडे प्रथम विशेष उपयोग थया बाद जे सामान्य उपयोग थाय ते केवळदर्शन. ___दरेक पदार्थमा सामान्य अने विशेष ए वे धर्मों रहेला छे, त्यां आत्मानो उपयोग गुण जे समये पदार्थना सामान्य धर्म उपर प्रवर्ततो होय ते समये आत्मा दर्शन उपयोगवालो गणाय अनें विशेष धर्म उपर प्रवर्ततो होय त्यारे ज्ञानोपयोग कहेवाय, ते आगळ ज्ञानद्वारमा कहेवाशे. पुनः घट पदार्थमां घटत्व-अने वर्णत्व ए सामान्य धर्म, अने अमुक स्थाननो, अमुकनो बनावेलो, अमुक व
नो, अमुक उपयोगमां आवनारो इत्यादि अनेक विशेष धर्मों छे. तथा आ दर्शननुं बीजुं नाम निराकार उपयोग पण छे. ॥इ. त्येकादश दर्शनद्वारम्. ११
॥ १२ ज्ञानहारम् ॥
आत्मानो पढार्थ प्रत्ये जे विशेष उपयोग ते ज्ञान, अथवा द. रेक पदार्थमा सामान्य धर्म अने विशेषधर्म ए बे धर्मों छे. त्यां आस्मानो उपयोग जे समये पदार्थना विशेष धर्म प्रत्ये प्रवर्ते ते समये आत्मा ज्ञान उपयोगवाळो कहवाय. तेमां छयस्थ जीवने प्रथम अन्तर्मु. सुधी सामान्य उपयोग ने त्यारबाद अन्तर्मु० ज्ञानोपयोग, अने श्री सज्ञने केवळज्ञान उत्पत्तिसमये केवळज्ञान अने बीजे सपये केवळाशन त्रीजे समये केवळज्ञान ४ थे समये केवळदर्शन ए प्रमाणे एकेक समयने अन्तरे दर्शनोपयोगने ज्ञानोपयोग परावर्समान थया करे छे पुन: अहिं ज्ञान ते सम्यगज्ञान ग्रहण करवू