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॥ दंडकविस्तरार्थः॥
आ आठ समयना प्रयत्नथी त्रणे कर्मोनी स्थिति आयुष्य तुल्य थाय, अने ते साथे दरेक समये रसघात पण थाय छे, एमां त्रीजे चोथे ने पांचमे समये अनाहारक तथा कार्मण काययोगी होय, हेलेने आठमे समये औदा. योगी होय अने बीजे छ ने सातमे औदा. मिश्र योगी होय.
(१) काळनियम-केवलि समु० ८ समय प्रमाण, अने सर्व अन्तर्मु. प्रमाण छे.
(२) ग्रहणवजननियम-वेदनीय मरणने केवलि समु० मां कर्मपरमाणुओनो विनाश छे, पण नवं ग्रहण नथी, कषाय समु०मां कषायमोहनीय कर्मपुद्गलोनो विनाश, अने तेथी बीजा अधिक कषाय पुद्गलोर्नु ग्रहण पण थाय छे, ने जो तेम न थाय तो सर्वथा कर्मनो अभाव थवाथी वीतरागपणुं प्राप्त थवानो प्रसंग आवे.-तथा वै०-०-ने आहा० समु०मां ते ते नामकर्मनां पुद्गलोनो विनाश छे, ने ते ते देह वर्गणाना पुद्गलोर्नु ग्रहण छे.
(३) आभोगानाभोगनियम-वेदनाकषाय-ने मरण ए ३ समुद्रात स्वाभाविक थाय छे, पण जीव जाणी जोइने करवा जाय तोज बने एम नथी माटे अनाभोगिक, अने शेष चारे समुद्धात जीवना विचार पूर्वक थाय छे माटे आभोगिक, तथा दरेक समुद्घातमा आत्मप्रदेशो शरीरथी जे बहार नीकळे छे ते सर्व प्रदेशो बहार नीकळता नथो पण केटलाएक प्रदेशो शरीरमा पण होय ने बीजा केटलाएक बहार नीकळे छे, जेथी शरीर आत्मप्रदेश रहित थाय नहि. इत्यादि समुनु विशेष स्वरूप सिद्धान्तथी जाणवू. ॥इति नवमं समुद्घातद्वारम् ॥