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॥ तैजसआहारककेवलिसमुद्घातद्वारवर्णनम् ॥ (.२५) शरीर बहार काढी जे स्थाने तेजोलेश्या ( अथवा शीत लेश्या) मूकवानी छे ने स्थान सुधी ( उ० थी संख्यातयोजन ) दीर्घ अने स्वदेह प्रमाण स्थूळ एवो दंडाकार रची पूर्वोपार्जित तैजस परमाणुओनो पूर्वोक्त रीते घात करवा पूर्वक तेजोलेश्या ( अथवा शीतलेश्या) मूके ते तैजस समुद्घात.
६ आहारक लब्धिवाळा चौदपूर्वधर मुनि श्रीजिनेश्वरनी ऋद्धि देखवाने अथवा सूक्ष्मसंदेह निवारवाने इत्यादि कारणथी स्वशरीर प्रमाण स्थूळ अने उत्कृष्टथी संख्यात योजन दीर्घ दंड करी पूर्वोपार्जित आहारक नामकर्मनां पुद्गलो पूर्वोक्त रीते निजरखा पूर्वक आहारक देहयोग्य पुद्गलो ग्रहण करी आहारकशरीर रचे ते आहारकसमुद्घात.
७ जे केवलिने नाम-गोत्र-अने वेदनीय ए प्रण कर्मनी स्थिति पोताना आयुष्यनी स्थितिथी अधिक रही होय तो ते त्रणनी स्थितिने आयुष्यस्थिति जेटली सरखी करवा माटे अन्तर्मु० प्हेला जेणे आवजिकरण कयु होय छतां कर्मस्थिति अधिक रही जाय तो तेनुं समीकरण करवा माटे जेओर्नु अन्तर्मु० जेटलं आयुष्य बाकी रह्यं होय एवा केवलि भगवान् पोताना आत्मप्रदेशोने शरीर बहार काढी प्रथम समये लोकना नीचेना छेडाथी उपरना. छेडा सुधी दीर्घ, ने स्वदेहप्रमाण स्थूळ दंडाकार करी, बीजे समये ते दंडाकारमाथी आत्मप्रदेशोने स्वदेह प्रमाण जाडाइ कायम राखी उत्तर दक्षिण लंबावी कपाट-(कमाड) आकारे रची, त्रीजे समये पूर्व पश्चिम लंबावी मंथान-( रवैयानो ) आकार रची, चोथे स. मये चारे आंतरा पूरी समग्र लोकमां व्याप्त थाय, तदनंतर पांचमे समये आंतरामा रहला आत्मप्रदेशो संहरो मंधाना करी, छट्टे समये मंथानाकार संहरी कपाटकार करी, सातमे समये कपाटकार संहरी दंडाकार करी, आठमे समये दंड सहरी देहस्थ थाय. ते केवलि समुद्घात.