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(२४) ॥ दंडकविस्तरार्थः ॥ पोताना केटलाएक आत्म प्रदेशोने शरीर बहार काढी मुखादिकनां विवर अने खभादिकनां अन्तर पूरी शरीरनी उंचाइ ने जाडाइ जेटलो एक सरखो दंडाकार रची अशातावेदनीयनां घणां कर्म पुदूगलोनो उदीरणा करणवडे उदयावलिकामां लावी घात करे--(निजरे ते वेदना समुद्घात. _____ २ अत्यन्त कषायवडे व्याकुळ थयेलो आत्मा केटलाएक आ. स्मप्रदेशोने शरीर बहार काही मुखादिकनां पोलाण अने खभादिकनां अंतर पूरी पूर्वोक्त रीते स्वदेहप्रमाण आत्मप्रदेशोनो दंडाकार रची कषायमोहनीयकर्मनां घणां कम पुद्गलोने उदीरणा करणवडे उदयावलिकामां लावी घात करे-( भोगवीने निर्जरे ) ते कषाय समुद्घात. . ___३ मरणना अन्त अवसरे मरणथी व्याकुळ थयेलो आत्मा मरणथी अन्तर्मुः हेलां पोताना आत्म प्रदेशोने शरीर बहार काढी ज्यां उत्पन्न थवानो छे ते स्थान सुधी आत्म प्रदेशोने लंबावी स्वदेह प्रमाण स्थूळ ने उत्पत्तिस्थान सुधी ( उ० असंख्ययोजन ) दीर्घ दंडाकार रची अन्तर्मु० सुधी तेवीज अवस्थाए रही आयुष्यकर्मनां घणा पुद्गलोनो उदीरणा करणवडे उदयावलिकामां लावी घात करे ते मरण समुद्घात.
४ वैक्रिय लब्धिवाळो आत्मा पोताना आत्मपदेशोने शरीर बहार काढी जे स्थाने वैक्रिय नवं रूप रचवान छे ते स्थानथी उ. थी संख्यातयोजन प्रमाण दीर्घ अने स्वदेह प्रमाण स्थूळ दंडाकार रची पूर्वे बांधेला वैक्रियनामकर्मनां पुद्गलोने पूर्वोक्त रीते उदयमां लाववा साथे वैक्रिय शरीर वर्गणानां पुद्गलो ग्रहण करतो जाय ने उत्तरदेहनी रचना करे ते वैक्रियसमुद्घात.
५ तेजोलेश्यानी लब्धिवाळो आत्मा पोताना आत्मप्रदेशोने