________________
॥८-९ इन्द्रियसमुद्घातद्वारवर्णनम्॥ (२३.) जोव पंचेन्द्रिय, अने उपयोगरूप भावेन्द्रियनी अपेक्षाए सर्वे जीव एकेन्द्रिय गणाय. इत्यादि इन्द्रिय संबंधि घणुं विवेचन नवतत्त्वविस्तरार्थमां करेल होवाथी अहिं लखायु नथी. ॥ इत्यष्टममिन्द्रियद्वारम् ॥ ८॥
॥ ९ समुद्घातहारम् ॥
सम्-एकी भावे-( एकदम-शीघ्र ) उत्-प्रबळतावडे-(आस्माना अतिप्रयत्नवडे ) घात-कर्मपरमाणुओनो विनाश करवो ते समुद्घात, वेदना-काय-मरण-वैक्रिय-तैजस-आहारक-- अने केवलिक ए प्रमाणे ७ 'प्रकारनी छे. ते दरेकन किचिंत् स्वरूप आ प्रकारे-(१) समुद्घातस्वरूप
१ अत्यन्त वेदनावडे व्याकुळ थयेलो आत्मा तीव्र प्रयत्नथी
१ गाथामां दु समुग्घाया-बे समुद्धात ते एक जीव समुद्घात ने बीजी अजीव समुदघात, ए बेमांथी अहि जीवनो अधिकार चालतो होवाथी मात्र जीवनीज ७ समुद्घातोनु व. र्णन कर्यु छे, अने अचित्त महास्कंध नामनी पुद्गल वर्गणानो एक स्कंध तथा विध विश्रसा-( स्वाभाविक) प्रयोगे अथवा विश्रसा परिणामे परिणत थयो छतो आगळ कहेवाती केवलि समुद्घातनी पद्धतिए प्रथम समये दंड, बीजे समये कपाट, त्रीजे समये मंथान, चोथे समये मंथानान्तरपूर्ति करी लोकमां सर्व व्यापी थइ पांच मे समये अन्तर संहरण, छठे समये मंथान संहरण, सातमे समये कपाट संहरण, ने आठमे समये दंड संहरण करी स्वभावस्थ अंगुलनी.. असंख्यातमा भागनी अवगाहनावाळो थाय, ए अचित्त महास्कंध संबंधि अजीव समुरातन अत्रे प्रयोजन नहिं होवाथी अर्थ प्रसंगे का नथी.