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________________ ॥ दृष्टिद्वारवर्णनम् ॥ (२७) ॥ १० दृष्टिद्वारम.॥ दृश्यते अर्थानां सदसत्स्वरूपमनेनेति दर्शन-प्रदार्थोनुं सत् वा असत् स्वरूप जेनावडे देखाय-(जणाय)ते दर्शन अथवा दृष्टि सम्यग्-असम्यक् ने मिश्र एम त्रण प्रकार होवाथी सम्यक्त्व-मिथ्यात्व-ने मिश्र एम ३ प्रकारनी दृष्टि छे. त्या पदार्थनु सत् स्वरूप कदी सत्रूपे ने कदी असतरूपे जाणे, असत् स्वरूपने कदी असत्रूपे ने कदी सरूपे जाणे ए रीते पदार्थना स्वरूपने य. थार्थ न जाणे ते मिथ्यादृष्टि, पदार्थना सत् स्वरूपने सत् स्वरूपे जाणे अने असत् स्वरूपने असत् स्वरूपे जाणे एम वस्तु स्वरूपने यथार्थ जाणे, ते सम्यग्दृष्टि, अने पदार्थना सत् स्वरूप बा असव स्वरूपने समकाळे केटलेक अंशे यथार्थने केटलेक अंशे अयथार्थ जाणे ते मिश्रदृष्टि ए त्रणे दृष्टिना उत्तर भेद आ प्रमाणे १ सम्यकत्व-आत्मानो पदार्थने यथार्थपणे जाणवारूप सम्यक्वगुण रोकनार ३ दर्शन मोहनीय अने ४ अनंतानुवंधि ए ७प्रकृतियो उपशान्त थतां-(उदयथी रोकातां) आत्माने जे श्रद्धागुण प्रगट थाय ते उपशम सम्यक्त्व, अन्तर्मुहूर्त काळ मात्र टके छे. तथा आखा भवचक्रमां पांचवारज, अने एक भवमां बे वार प्राप्त थायछे. १ अर्थात् जेम मदिरा पीवाथी विवेकविकल थयेलो जीव माने मा कहे अने स्त्री पण कहे, स्त्रीने स्त्री कहे अने स्त्रीने मा पण कहे, पोते निधन होय छतां धनवान कहे, ने निधन पण कहे ए प्रमाणे सत्य अने असत्य बन्नेरूपे बोले तोपण विवेकशून्य होवाथी सत्य ते पण असत्य अने अमत्य ते पण असत्यज गणाय, तेम मिथ्यादृष्टि सत् ने कदी सत् जाणे ने फदी असत् पण जाणे छतां असत् ज्ञानज कहेवाय. ( प भावार्थ श्रीतत्वाभाष्यमां )...
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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