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________________ ॥ सतमलेश्याद्वारवर्णनम्॥ (२१) लेश्याना शुद्ध अध्यव०नी अपेक्षाए अशुभज गणाय छे. तथा तेजो आदि प्रणे शुभ लेश्यामां पण असंख्य अध्यवसायो अनुक्रमे अधिक अधिक विशुद्ध जाणवा. ___ तथा प्रथमनी ३ (द्रव्य)लेश्याओनो वर्ण-गंध-रस-स्पर्श अशुभ छे, ने उपरनी ३ द्रव्यलेव्याओनो वर्ण-गंध-रस-स्पर्श शुभ छे. तथा मनुष्य अने तिर्यंचनी द्रव्यलेश्याओ दरेक अन्तर्मुहूर्त बदलाया करे छे, अर्थात् कृष्णलेश्यानां पुद्गलो ते अन्तर्मु० बाद नीलादि ५ मांथी कोइपण लेश्यारूप थइ जाय छे, एज प्रमाणे नीलादि सर्व लेश्यानां पुद्गलोनो वर्ण-गंध-रस-स्पर्श अन्तर्मुः बाद अन्य लेश्याना वर्णादिरूपे थइ जाय छे. माटे मनुतिर्यनी लेश्याओ वस्त्र समान कही छे, कारणके वस्त्रने रंगमां बोळतां जेम सद् रंगमय थइ जाय छे, तेमां कृष्णद्रव्यो ते नीलद्रव्यना संबं. धथी नीलरूप थइ जाय छे. पुनः देव अने नारकनी द्रव्यलेश्याओ स्फटिकवत् कही छे, कारणके स्फटिक जेम भिन्नवर्णना पुष्पादिकना संयोगथी साशे स्वरूप त्याग कर्या विना ते रंगवाडं देखाय छे, पण स्वरूपनो त्याग नथी करतुं. माटे देवनारकोनी द्रव्यलेश्या अवस्थित छे. पुनः भावलेश्याओ तो चारे गतिवाळाने अन्तमू० बाद बदलाया करे छे. चालु दंडक प्रकरणना अधिकारमां द्रव्यलेश्यानोज अधिकार छे. ॥इति सप्तमं लेश्याहारम् ॥७॥ ॥ ८ इन्द्रियहारम् ॥ इन्द्र एटले आत्मा तेनु जे चिन्ह ते इन्द्रिय, अथवा इन्द्र एटले आत्माने ज्ञान थवा जे द्वार ते इन्द्रिय ते स्पर्शन-रसनाघाण-चक्षु-ने श्रोत्र एम पांच प्रकारनी छे, त्या स्पर्शनादि ५
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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