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॥ संहननद्वारवर्णनम् ॥ (१५) (ए चारने) मेदीने हाडकानी खीली आरपार नीकळी होय, एवा प्रकारनी संधीना हाडकानी मजबुताइनुं नाम वज्रर्षभनाराच (-वज्र-खीली, ऋषभ-पाटो, नाराच-मर्कटबंध ) संहनन कहेवाय: १
२ हाडकानी खीली सिवाय पूर्वे कहेली संधिगतहाडनी मजबु. ताइ, के जेमां ऋषभ-पट्टो, ने नाराच-मर्कटबंध बेज होय ते ऋषभनाराच संहनन कहेवाय. २
३ पूर्वोक्त रीते एकलो मर्कटबंध होय ते नाराच संहनन. ३
४ पूर्वोक्त मर्कटबंध हाडकानां वन्ने छेडाना परस्पर हतो तेम नहिं होतां मात्र एक छेडो बीजा छेडाने मर्कटबंध रीते वळगेलो होय ने बीजो छेडो सीधो होय, तथा तेना मध्यमांथी हाड खीली पण आरपार थइ होय तो तेवी संधि रचनानुं नाम अर्ध नाराच कहेवाय. ४
५ तथा हाडना. बे छेडा एक उपर एक सीश चढेला होय ने वचमां खीली आरपार थइ होय तो तेवी संधिरचनानुं नाम कीलिका संहनन कहेवाय. ५
६ तथा हाडनो एक छेडो खोमण (-स्हेज खाडा) वाळो होय अने तेमा हाडनो बीजो छेडो अडकीने रहेलो होय, तेवी संधिर चनानु नाम छेदपृष्ठ संहनन कहेवाय, आ संहननमां बे छेडा सामासामी आवीने स्पर्शला होय पण एक बीजापर चडेला होता नथी, अने खीली होती नथी माटे कोइ हाडने खेचतो खोभणमांथी बहार नीकळी जतां " हाडकुं उतरी गयुं " कहेवाय अने बे हाडकांने एवा प्रकारनो आंचको लागतां खोभणमांथी नीकली एक बीजापर चढी जाय त्यारे " हाड• चढी गयुं " कहेवाय. तथा तैलादि मसल्वारूप सेवा वडे आत एटले पीडायलं (-ते वडे दृढ रहेना5) होवाथी एनुं बीजु नाम सेवास पण छे. ६ "संह