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॥ दंडकविस्तरार्थः ॥ मूकवामां जे कारणरूप शरीर ते तैजस शरीर सर्व संसारी जी. वने होय. ४
५ कर्मपुद्गलोथी बनेल ते कामण शरीर, केटलाएक आठ कर्म परमाणुओना समुदायरूप-(१५८ प्रकृतियोना समुदाय)ने कहे छे. पण ते उचित समजातुं नथी. कारण कार्मण शरीर नाम कर्मना भेदरूप, बोरने कुंडानी जेम सर्व कर्मनो आधार छे. ते कामंण शरीर पण सर्व संसारी जीवने होय छे. आ शरीर जीवने परभवमां लइ जनार होय छे. ५ ॥इति प्रथमं शरीरद्वारम्॥१॥
॥ २ अवगाहनाहार. ॥
कया जीवनुं शरीर केटलं मोटुं होय, एम कहेवू ते अवगाहनाद्वार कहेवाय. ॥ इति द्वितीयमवगाहनावारम् ॥२॥
॥३ संघयणहार. ॥
हाडकाना समूहनुं बंधारण ते संहनन कहेवाय. तेना ६ भेद आ प्रमाणे-१ संधिने स्थाने हाडना बे छेडा एक बोजाने परस्पर आंटी मारीने वांदरीना बच्चानी पेठे वळगी रहेला होय, ने ते बन्ने छेडा उपर मध्यमां हाडकाना पाटो वौंटायळो होय, अने ते उपरथी चारे अंगने एटले प्रथम पाटाने, तेनी नीचे संधिगतहाडने, तेनी नीचे संधिगत वीजा हाहने, ने तेनी नीचे पाटाने
१ सर्व शरीरनी उत्पत्तिमां, भवान्तर जवामां, प्रथम स. मये आहार पुद्गलो लेवा विगेरेमां कारणरूप छे.