SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ प्रथमशरीरद्वारवर्णनम् ॥ (१३) -बळदेव--इत्यादिने प्राप्त थतुं होवाथी, अथवा मोक्षरूप उदारगुण अथवा अनंत लब्धिरूप उदारगुण ए शरीर घडेज प्राप्त थतो होवाथी अथवा उदार एटले स्थूल पुद्गलोर्नु बनेलं तिर्यंच--अने मनुष्योनुं शरीर औदारक कहेवाय छे. १ २ तथा विविधप्रकारनी क्रियाओवाढं एटले एक होइने अनेक थाय, अनेक होइने एक थाय, भूमिचर होइने आकाशचारी थाय, आकाशचारी होइने भूमिचारी थाय, नाना होइने मोटा थाय, मोटा होइने नाना थाय, हलकुं होइने भारी थाय, ने भारी होइने हलकुं थाय, दृश्य होइने अदृश्य थाय, अने अदृश्य होइने दृश्य थाय इत्यादि अनेक प्रकारनी क्रियावालं अथवा शक्तिवाडं जे शरीर ते वैक्रियशरीर सर्व देव-सर्वनारक--केटलाएक गर्भज मनुष्य--केटलाएक गर्भजतिर्यच अने केटलाएक बादरपर्याप्ता वायुकायने होय छे. २ ३ आमाँषधि आदि लब्धिवाळा १४ पूर्वधर मुनि महाराज श्रीजिनेश्वरनी ऋधि देखवाने अथवा सूक्ष्मशंकानुं निराकरण करवाने १ हाथ प्रमाणनु नवु शरीर बनावी श्री विहरमान तीर्थकर पासे मोकले ते 'आहारक शरीर कहेवाय.आ शरीरना परमाणुओ वैक्रिय शरीरना परमाणुओथी तद्दन भिन्न तथा सूक्ष्म होवाथी अने केटलाएक गुण वै० शरीरथी जुदा होवाथी ए शरीर वैक्रियान्तर्गत न गणाय. ४ आहार पचाववामां, तेजोलेश्या मूकवामां, ने शीतलेश्या १ आखा भवमां वर्ततां चारवार आहारक शरीर बना. वे एक. भवमा उत्कृष्ट बे वारज बनावे. आहारक शरीरनो जघन्य विरह काल १ समय, उत्कृष्ट छ मास अथवा मतान्तरे वर्षपृथक्त्व विरहकाळ छे.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy