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________________ (१२) ॥ दंडकविस्तरार्थः ॥ इंद्रिय-इन्द्रिय (५) चवण-च्यवन-(मरण). दुसमुग्घाया-समुद्घात. ठिई-स्थिति-(आयुष्य) दिहि-दृष्टि (३) पज्जत्ति-पर्याप्ति (६) दसण-दर्शन (४) किमाहारे-कइ दिशिनो आहार ? नाणे-ज्ञान (८) सन्नि-संज्ञा (३) जोग-योग (१५) गइ-गति. उवओग-उपयोग (१२) आगइ-आगति. उववाय-उपपात-(जन्म). ए-वेद (३) __गाथार्थः-अति संक्षेपवाळी ( २४ द्वाररूप संग्रहणी) आ (प्रमाणे छे.)-शरीर-अवगाहना--संघयण--संज्ञा--संस्थान--कपाय--लेश्या--इन्द्रिय-बे समुद्घात--दृष्टि-दर्शन-ज्ञान- अज्ञान--- योग--उपयोग--उपपात-जन्म-मरण--आयुष्य- पर्याप्ति- कइ दिशिनो आहार--संज्ञिप[---(संज्ञा)--गति--आगति---अने वेद ( ए २४ द्वार छे.) विस्तरार्थः-२४ दंडकोमा २४ द्वारोनो अवतार मात्र ४४ गाथामांज करेलो होवाथी 'संखित्तयरी उ इमा'-आ २४ द्वाररूप संग्रहणी--( संग्रहन स्त्रीलिंग संग्रहणी ) अति संक्षिप्त छे. ते २४ छारोनुं किंचित् स्वरूप कहेवाय छे. ॥ १ शरीरडार.॥ शीर्यते--विनाश पामे ते शरीर पांच प्रकारना है. ते आ प्रमाणे-१ उदार--( विशाळ-प्रधान ) गुणवाळा एवा. श्री ती. थैकर--गणधर--सर्वज्ञ--सर्व विरति--चक्रवर्ति- वासुदेव--प्रतिवासुदेव १. मूळ गाथामां. अज्ञानद्वार कह्यं नथी कारणके ज्ञानद्वारमां अज्ञानद्वारने अंतर्गत गणेल छे, ते अंतर्गत अज्ञानद्वारने छुटू पाडतां अहिं २४ द्वार थाय.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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