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॥ दंडकेषु गत्यागतिद्वारम् ॥
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॥शब्दार्थः॥
पुढवी-पृथ्विकाय
जीवा-जोवो आऊ-अपकाय
सव्वे-सर्वे जीवो वणस्सइ-वनस्पतिकाय उववजन्ति-उत्पन्न थाय छे, मज्झे-मध्ये-मां. | नियनिय-पोतपोताना नारय-नारक
कम्माणुमाणेणं-कमने अनुसारे विवज्जिया-वर्जीने-सिवायना |
गाथार्थः -पृथ्विकाय-अपकाय-ने वनस्पति मध्ये नारक सिवायना सर्वे जीवो पोत पोताना कर्मने अनुसारे उत्पन्न थाय , छे, (ए पृथ्व्यादि ३ मां आगति कही.)
विस्तरार्थः-आ गाथामां पृथ्व्योदि ३ दंडकमां आगति सामान्यथी कहीने विशेषथी आ प्रमाणे--
प० पृथ्वि-अप-ने प्र० वनस्पतिमा-४८ तिर्यच-१. ०१ सम्मू० मनुष्य कर्मभूमिना पर्या० अपर्या. मली ३० मनुष्य१५ परमाधामी-१० भवनपति-१६ व्यन्तर-१० मुंभक-१० ज्योतिषी-सौधर्म-ईशान-अधो किल्बिषिक ए प्रमाणे २४३ जीवो ए ३ लब्धिपर्याप्तमां भावी उपजे.
अपर्या० पृ० अप-प्र० वन तथा सर्व साधा. वनस्पतिमों ४८ तिर्यंचो तथा ३० कर्म० मनुष्यो,१०१सम्मू० मनुष्यो आवी उपजे छे, ए प्रमाणे ए ३ दंडकमां पूर्वोक्त दंडकना जीवभेदो पोत पोताना कमने अनुसारे (-कर्मना वशथी ) उत्पन्न थाय छे, ए चोथा चरणमां जीवोने परभव जवामां ईश्वरप्रेरणाना लौकिक मतनुं निवारण कथु जाणवू. .
१ कर्मने अनुसारे कहेवाथी जे केटलाक घादीभो ईश्वरेच्छा अथवा ईश्वरप्रेरणाथी गत्यागति करे छे तेम कहे छे तेनु खंडन कर्यु कारण इच्छा अथवा प्रेरणा. सकर्मजीवनुं कार्य छे, अने कर्म रहित थया विना ईश्वर कही शकाय नही