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________________ ॥ दंडकेषु गत्यागतिद्वारम् || ॥ मूळ गाथा ३० मी० ॥ पजत्तसंखगब्भय, तिरियनरा निरयसत्तगे जन्ति । निरयउवहा एएसु, उववजंति न सेसेसु ॥ ३५ ॥ ॥ संस्कृतानुवादः ॥ पर्याप्त संख्येयामुर्गर्भजतिर्यग्नरा नरकसप्तके यान्ति । नरकोत्ता एतेषूपपद्यन्ते न शेषेषु ॥ ३५ ॥ ॥ शब्दार्थः ॥ पज्जत्त - पर्याप्त संख - संख्यात आयुष्यवाळा गव्भय – गर्भज तिरिय - तिर्यच नरा - मनुष्यो निरय- नरकमां सत्तगे - सात (माँ) जन्ति - जाय छे, निरयनरकमांथी . (१२९) उवट्टा - नीकळेला जीवो एएस - ए बन्नेमा उववज्जन्ति उपजे छे न - नथी उपजता सेसेसु - बाकीना दंडकोमां गाथार्थः - पर्याप्त संख्यात आयुष्यवाळा गर्भज तिर्यंच अने पर्या० संख्यायुष्यवाळा गर्भज मनुष्यो साते नरकमां जाय छे, ए नारकनी आगति कही, अने नरकमांथी निकळेला (अर्थात् ) नारको ए बेमां ज उपजे के पण बाकीनन (२२) दंडकोमां उपजता नथी ए नारकनी गति कही, विस्तरार्थः --- पर्याप्त संख्यात आयुष्यवाळा गर्भज तिर्यचो अने एज विशेषणवाळा ग० मनुष्यो सात नरकमां जाय ए नारकमां आगति सामान्यथी कही, अने विशेषथी आ प्रमाणे रत्नप्रभामा - १५ कर्म० मनु० -५ ग० ति० -५ समु०
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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