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________________ ॥ दंडक विस्तरार्थः ॥ -- विस्तरार्थः - मनुष्योने दीर्घका० संज्ञा कही पण ते सर्व गर्भज मनुष्यने छे, अने सम्मू० मनुष्यो तो मनरहित होवाथी हैतुवादो० संज्ञावाळाज छे, पुनः केटलाएक मनुष्योने जे दृष्टिवादो० संज्ञा कही ते संबन्धद्वार प्रसंगे कहयो छे, दृष्टिवादो० संज्ञा सम्यदृष्टिने ज होय छे, (१२६) तथा पर्या० पंचे० ति० अने मनुष्यज चारे प्रकारना देवोमां जाय. ए देवोमां आगति सामान्यथी कही, ने विशेषथी आ प्रमाणे -- १० भवन, १६ व्य०, १५ परमाधामी, १० जृंभक, ए ५१ देवोमा १०१ प्रकारना लब्धिपर्याप्त मनुष्यो तथा युगलिक चतुष्पद सहित ५ गर्भज तिर्यच लब्धिपर्याप्ता ने ५ सम्मू० तिर्थ - चलब्धिपर्याप्त एटला जीवो ( ए ५१ देवोमां ) आवी उपजे. अने १० ज्योतिषी तथा सौधर्मकल्पमां अन्तद्वीप विना ४५ क्षेत्रना मनुष्यो ने ५ गर्भ० तिर्यच ए ५० जीवो आवी उपजे छे, ईशानमां पूर्वोक्त ५० मांथी ५ हिमवन्त ने ५ हिरण्यवन्त क्षेत्रना युगलिक मनुष्य अने युगलिक तिर्येच सिवायना ४० जीवो आवी उपजे, अधो किल्बिषकमा १५ कर्मभूमिना संख्येय वर्षायुष्क ( वधुमां वधु पूर्वक्रोड वर्षायुष्क ) पर्या० ग० मनुष्यो, ५ देवकुरु ने ५ उत्तरकुरु क्षेत्रना युगलिक तिर्यंच अने युगलिक मनुष्यो तथा संख्येयायुष्क ५ गर्भज तिर्यंच लब्धिपर्याप्ता ए ३० जीवो आवी उपजे, तथा 3 जा थी ८ मा कल्पसुधीमां संख्येयायुष्क लब्धिपर्याप्त १५ कर्मभूमिना गर्भज मनुष्यो अने एज विशेषणवाळा ५ गर्भ० तिर्यचो मली २० जीवो उपजे ने आनतथी सर्वार्थ सुधीमांउक्त विशेषणवाळा १५ कर्मभूमि मनुष्यो आत्री उपजे. अवतरण - आ गाथामां देवनुं गतिद्वार ( - देवो मरण पांमी ने क्या उपजे ? ते ) कहे छे,
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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