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________________ ॥ दंडकेषु संज्ञाबारम् ॥ (१२३) शिमा रहेलो एकेन्द्रियजीव नीचे अने एक पासनी दिशामां अलो. काकाश होवाथी बे स्थानेथी आहार मेळवी शके नहिं माटे ४ दिशिनो आहार करे. ए प्रमाणे सर्वोपरितन प्रतरोमां उध्वदिशिथो अने एक पडखानी दिशिमांथी आहारना अभावे बे रीते ४ दिशिनो आहार होय. ___तथा सर्वथी नीचे एकादि प्रतर छोडीने उपरनां प्रतरोमां लोकने अन्ते दिशामा रहयो होय तो मात्र जमणी बाजूनी दिशाए अलोकनो व्याघात थवाथी पुद्गल ग्रहण नहिं करी शकवाथी पांच दिशिथी आवेलो आहार ग्रहण 'करे, __ अने लोकनी अंदरना भागमा रहेला एकेन्द्रियोने कोइपण दिशाए अलोकाकाशनो व्याघात नहिं नडवाथी छए 'दिशिमांथी आहार मेळवी शके छे. ॥ ॥ इति आहारद्वारम् ।। तथा सम्मू० ति ने सम्मू० मनुष्यने ६ दिशिनो आहार होय अने जीवोना निराहारीपणानो समय आहारद्वारना वर्णन प्रसंगे कह्यो छे, ॥ इति आहारबारम् ॥ १ सर्वाधस्तन वा सर्वोपरितन प्रतरोमां लोकनो तीजन्ति भाग वर्जीने अदरना भागमा रहेलो एके० जीव पण उध्व वा अधोमांथी कोइपण एक दिशिनो आहार न मेळवी शकेतो ए रीते पण पांचदिशीनो आहार संभवे छे परन्तु सिद्धान्तोमा उपर प्रमाणेनुं दृष्टांत बतावेलुं होवाथी अहीं ते प्रमाणे लख्युं छे, तत्त्व केवलिमहाराज जाणे. २ अहीं विदिशाओ एक प्रदेश श्रेणिरूप होवाथी तेटला एक प्रदेशरूप भागमां आहार होइ शके नहिं कारण एक प्रदेश स्थित द्रव्य जीवगाह्य होय नही. आहारदेशमां आवेलो विदिशानो एक प्रदेश बहुतम देशवाली दिशाओमांज गणाइ जतो होवाथी १० दिशानो आहार कहेवाय नही.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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