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________________ (१२०) ॥ दंडविस्तरार्थः ॥ क्षाए जाणवू, शेष देवोने एथी अधिक आयुष्य छे ते संबन्धि विशेषता यन्त्रमा कही छे, सुरनरतिरिनिरएमु छ पजत्ति-देवोने, गर्भज मनुष्योने -गर्भज तिर्यंचोने अने नारकोने ए सर्व जो लब्धि पर्याप्ता होय तो तेओने ६ पर्याप्तियो होय छे, __थावरे चउर्ग----लब्धिपर्याप्त स्थावरोने आहाने--शरीर-इन्द्रिय अने उच्छवास ए ४ पर्याप्ति होय छे, अवतरण-आ गाथामां विकलेन्द्रियोने पर्याप्ति तथा . सर्व दंडके कइ दिशिनो आहार होय ? ते कहेवाय छे, ॥मूळ गाथा ३१ मी.॥ विगले पंच पजत्ती, छदिसि आहार होइ सम्बेसि पणगाइपएभयणा, अह सन्नतियं भणिस्सामि ॥३१॥ संस्कृतानुवादः॥ विकले पंच पर्याप्तयः षदिगाहारो भवति सर्वेषां । पनकादिपदे भजना, अथ संज्ञात्रिकं भणिष्यामि ॥ ३१ ॥ ॥शब्दार्थः॥ १ देवीने सिद्धान्तमा (-श्री भगवती जी मां) ५ पर्याप्तियो पण कही छे, परन्तु भाषा अने मन पर्याप्ति एक स. मयमां समकाळे उत्पन्न थवाथी ए बे पर्याप्तिने एक गणो छे. माटे वस्तुतः तो देवने ६ पर्याप्तिज कहेवाय, पुनः अनुत्तर वासी देवोने शब्दोच्चार करवा जरुर नहिं होवाथी शब्दो. च्चार करता नथी परन्तु शक्तिरूप वचन पर्याप्ति छे. _ तथा श्री विचारसप्ततिकामां देवने नारकने बन्नेने मूळ वैक्रिय तथा उत्तर वैक्रिय संबन्धि उपरोक्त रीते ५-५ प. र्याप्तियो कही छे.
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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