SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ दंडकेषु उपपात-च्यवनहारवर्णनम् ॥ (१०५) ए प्रमाणे ज्यां जेटलो विरहकाळ कह्यो छे, त्यां तेटला काळ सुधी कोइपण जीव नवो उपजे नहिं, तेम कोइ मरे पण नहिं, ___तथा दंडकमां अनधिकृत सम्मू० मनुष्योनी एक समयमा उत्पत्ति च्यवन संख्या तो ग्रंथकारे गाथामांज कही अने सम्मू० पंचेन्द्रिय तिर्यंच एक समयमां निश्चय असंख्यात ज उपजे अने असंख्यात मरण पामे छे, पण संख्यात नहिं, ॥ इति उपपात-च्यवनद्वारयुमलम्, ॥ हवे दरेक दंडकमां आयुष्यद्वार कहेवाना प्रारंभमां बावीस सग ति दस वास सहस्सुकि पुढवाई-पृथ्विकायादि पांचर्नु अनुक्रमे २२००० वर्ष-७००० वर्ष-३००० वर्ष-२०००० वर्षे-उत्कृष्ट आयुष्य छ एम सामान्यतः का, अने विशेषतः आ प्रमाणे पृथ्विकायमां हीरा-पन्ना विगेरे अतिनकर पृथ्विन २२००० वर्ष आयुष्य छे, कांकरा-हडताल-सुरमादिकनुं १८००० वर्ष आयुष्य मणसिल विगेरेनुं १६००० वर्ष, रेतिनुं १४००० वर्ष, गोपीचंदन कुमारमाटी विगेरे- १२००० वर्ष अने सुहाळी माटीनुं १००० वर्ष आयुष्य छ, शेष पृथ्वीओनुं आयुष्य श्री सर्वज्ञदृष्टिए जे होय ते जाणवू, ते उत्कृष्ट आयुष्य निर्व्याघात स्थानमा रहेला रनादिकनुं जाणवू, अन्यथा जघ० आयुष्य दरेकर्नु अन्तर्मु० छे. तथा निर्व्याघात स्थळे रहेला घनोदध्यादि जळनु, अग्निनु, वायुनुं वनस्पतिनु उत्कृष्ट आयुष्य केटलाक जीवोनुज होइ शकेछे. पुनः वनस्पतिमां फक्त बादर प्रत्येक वनस्पन्नुंज उत्कृष्ट आयुष्य
SR No.022358
Book TitleDandak Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGajasarmuni, Vijayodaysuri
PublisherGranth Prakashak Sabha
Publication Year1925
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy